Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 192
________________ लेश्या और मनोविज्ञान श्वास और प्राण, श्वास और मन अटूट कड़ी के रूप में काम करते हैं। मन को हम सीधा नहीं पकड़ सकते। प्राण की धारा को भी सीधा नहीं पकड़ा जा सकता । किन्तु मन के लिए प्राण को और प्राण के लिए श्वास को पकड़ना होगा । 182 श्वास विजय या श्वास नियन्त्रण के बिना ध्यान नहीं हो सकता । यह सच्चाई सबके द्वारा स्वीकृत रही है । " वृहद्नयचक्र" में योगी का पहला विशेषण श्वास - विजेता बताया गया है ।' ज्ञानार्णव में शुभचन्द्राचार्य ने लिखा है कि प्राणायाम के बिना प्राणविजय सम्भव नहीं और इसके बिना इन्द्रिय विजय, मनोविजय और कषायविजय का होना सम्भव नहीं । कायिक स्थिरता का संबंध श्वास की मन्दता और मानसिक एकाग्रता इन दोनों से है । जैनाचार्यों ने कायोत्सर्ग और श्वास का गहरा संबंध बतलाया है। कायोत्सर्ग का कालमान श्वासोच्छवास से ही निर्धारित किया गया है। प्रवचनसारोद्धार और मूलाचार' में कायोत्सर्ग का ध्येय, परिणाम और कालमान श्वासोच्छवास के आधार पर निर्णीत है । - शरीर शास्त्र के अनुसार हमारी क्रियाएं तीन प्रकार की हैं। 1. स्वत: चालित 2. प्रयत्नचालित और उभयात्मक । आगम की भाषा में भी तीन शब्द मिलते हैं 1. वैस्रसिकी - वह क्रिया, जो स्वभाव से चल रही है। 2. प्रायोगिकी - वह क्रिया, जो प्रयत्नपूर्वक की जाती है। 3. मिश्रित - वह क्रिया जो स्वभाव से भी चल रही है और जिसे प्रयत्नपूर्वक भी किया जाता है। श्वास तीसरी कोटि में आता है। श्वास स्वत:चालित तो है ही, इच्छाचालित भी है। श्वास सहज और प्रयत्नजनित दोनों है । प्रयत्न से श्वास की गति व दिशा में परिवर्तन किया जा सकता है । स्वेच्छा से श्वास पर नियमन से स्वत:चालित क्रियाओं पर नियन्त्रण की क्षमता आ जाती है। चेतन मन पर भी नियन्त्रण हो जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ लिखते हैं कि श्वास नियन्त्रण का महत्त्वपूर्ण सूत्र बन सकता है। इससे आवेश जनित समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। यह आनापान की पद्धति, जो नामकर्म की एक प्रकृति है, संभवत: ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तरायकर्म के क्षयोपशम में बहुत बड़ा आलम्बन बन सकती है। श्वास प्रेक्षा में राग-द्वेष के संस्कारों से बचा जा सकता है, क्योंकि जब हम श्वास को देखते हैं तब सिर्फ देखते हैं प्रिय अप्रिय भावों के साथ नहीं । प्रत्येक ध्यान पद्धति में श्वास को सूक्ष्म या मन्द करने का विधान मिलता है। प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में दीर्घश्वासप्रेक्षा तथा समवृत्ति श्वासप्रेक्षा के प्रयोग महत्त्वपूर्ण हैं दीर्घश्वासप्रेक्षा - प्रेक्षाध्यान में सहज श्वास पर नहीं, दीर्घश्वास पर ध्यान केन्द्रित करते हैं । सामान्यतः मनुष्य एक मिनिट में 15-17 श्वास लेता है। दीर्घश्वासप्रेक्षा में श्वास 1. वृहदनयचक्र 388; 3. प्रवचनसारोद्वार 3/183-85; - 5. आचार्य महाप्रज्ञ : अपना दर्पण, अपना बिम्ब, पृ. 89 Jain Education International 2. ज्ञानार्णव 29 / 10-12 4. मूलाराधना 2 / 116 विजयोदयावृत्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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