Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01
Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

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Page 374
________________ परिशिष्टम् ३५३ प्रयोगाः भाषार्थः । प्रयोगाः भाषार्थः परमर्तः-परमगत अर्थात् मुक्त । सारङ्गः-मृग। प्रार्णम्-अधिक ऋण (कर्जा)। कुलटा-व्यभिचारिणी स्त्री। वत्सतरार्णम्-बछड़े के निमत्त ऋण । सूत्राङ्काः ४० कम्बलार्णम्-कम्बल का ऋण । | शिवायोन्नमः-ओं नमः शिवाय- शिव वसनार्णम्-वस्त्र का ऋण । के प्रति नमस्कार हो। ऋणार्णम्-एक ऋण को उतारने के शिवेहि-हे शिव ! आइये । लिये उठाया गया दूसरा ऋण। (एवं विवृतौ) दशार्णः-दश ऋण = किले जिस देश में | कृष्णेहि--हे श्रीकृष्ण ! आइये । हों ऐसा देश । अवहि-समझ ले। सूत्राङ्काः ३७ सूत्राङ्काः ४२ प्रार्च्छति-अधिक चलता है। दैत्यारिः-दैत्यों का शत्रु (विष्णु)। (एवं विवृतौ) श्रीशः-लक्ष्मीपति भगवान् । प्रार्छत् अधिक चला। विष्णूदयः-भगवान् विष्णु का उदय । सूत्राङ्काः ३८ होतकारः-(ऋग्वेदी) का ऋकार । प्रेजते-अधिक काँपता है। (एवं विवृतौ) उपोषति-समीप जाता है। खरारिः-खर दैत्य के शत्रु श्रीराम । (एवं विवृतौ) भानूदयः-सूर्य का उदय । उपेजते-पास काँपता है। लक्ष्मीशः-कमलापति भगवान् । प्रेषयति-भेजता है। सूत्राङ्काः ४३ अवोषति-नीचे जाता है। हरेऽव-हे हरि ! रक्षा करो। सूत्राङ्काः ३६ विष्णोऽव-हे विष्णु, रक्षा करो। शकन्धुः-शक देश का कूप = कुआं । (एवं विवृतौ) कर्कन्धुः-बदरीफल-बेर । स्थलेऽत्र-इस स्थान में। मनीषा-बुद्धि । कृष्णोऽहम्-भगवान् श्रीकृष्ण मैं हूँ। मार्तण्डः-सूर्य । सूत्राङ्काः ४४ सीमन्तः-केशवेश। गो (5) अग्रम्-गौ के आगे वा गौ का हलोषा-हलदण्ड । अग्रभाग। लागलीषा-, चित्रग्वग्रम्-विचित्र गोओंवाले के आगे । पतञ्जलिः-पतञ्जलि ऋषि । गोः-गौ का (दूध आदि)।

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