Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01
Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd
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বিয়ি
भाषार्थः
धातवः
धातवः भाषार्थः । स०४६८
शुभ-(सञ्चलने)-विचलित होना । श्रु-(श्रवणे)-सुनना।
रणभ-तुभ-(हिंसायाम् )-हिंसा। सू० ५.३
संसु-भंसु-ध्वंसु-(अवलंसने)-गिर जाना । गम्ल-(गतौ)-(गमन)।
ध्वंसु-(गतौ) च-चलना। इति परस्मैपदिनः। सम्भु-(विश्वासे)-विश्वास करना । सू० ५०७
वृतु-(वर्तन)-वर्तन( होना)। एध-(वृद्धौ )-वृद्धि-बढ़ना।
सू० ५४० सू०५२४
दद-दाने-देना ( दान करना )। कमु-काम्तौ-इच्छा करना (चाहना)
स०५४१ सू० ५३४
त्रपूष-(लज्जायाम)-लजाना (शरमाना) अय-( गतौ ) चलना।
इत्यात्मनेपदिनः। सू० ५३६
सू० ५४२
श्रिञ्-( सेवायोम् )-सेवा करना । द्युत-(दीप्तौ)-प्रकाश होना चमकना ।
भृञ् ( भरणे पालन करना। सू०५३८
सू० ५४५ श्विता-(वर्णे)-(श्वेत) रंग देना । जिमिदा-(स्नेहने)-चिकना होना।
हृञ्-( हरणे)-हरना। निष्विदा-(स्नेहनमोचनयोः)-पसीना।
धृष-(धारणे)-धारण करना । ___आना और छोड़ना। णी-(प्रापणे )-ले जाना। शिक्ष्विदा-(स्नेहनमोचनयोः)-पसीना डुपचष्- ( पाके )-पकाना।
आना और छोड़ना। | भज- ( सेवायाम् )-भजना-(सेवाकरना) रुच-( दीप्तौ अभिप्रीतौ च )-चमकना, यज-( देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु )-पूचा अच्छा लगना ( रुचना)।
करना, संग करना, दान करना । घुट- परिवर्तने ) घोटना ।
सू० ५४८ शुभ-(दीप्तौ)-शोमित होना। वह-(प्रापणे )-ले जाना ( उठाकर )।
इति भ्वादयः ॥९॥
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