Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01
Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ धातवः भाषार्थः उज्झ ( उत्सगँ ) - त्यागना । लुभ ( विमोहने ) - लुभाना । सू० ६५७ तृप तृम्फ ( तृप्तौ ) - तुप्त होना । मृड ड ( सुखने ) --सुखी करना । शुन ( गतौ ) - जाना | इषु ( इच्छायाम् - चाहना | कुट ( कौटिल्ये )--कुटिलता करना । पुट ( संश्लेषणे ) -- जोड़ना । स्फुट ( विकसने ) - लिखना । स्फुर स्फुल ( सञ्चलने ) - फरकना परिशिष्टम् धातवः भाषार्थः विश ( प्रवेश ) -- प्रवेश होना । मृश ( श्रामर्शने ) - स्पर्श करना । षद्लृ सू० ६६६ रुधिर् ( आवरणे ) -- रोकना । भिदिर् ( विदारणे )-फाड़ना । छिदिर् ( द्वैधीकरणे )-तोड़ना । युजर् ( योगे ) - जोड़ना । रिचिर् ( विरेचने ) - रिक्त (दस्त ) होना । विचिर् ( पृथग्भावे ) - पृथक् होना । क्षुदिर ( सम्पेषणे ) - पीसना शल ( शातने ) - छीलना । ( विशरणगत्यवसादनेषु )-पृथक् होना, जाना, दुःखी होना । ( विक्षेपे ) - फेंकना । प्रच्छ मृङ सू० ६५६ सू० ६६२ ( निगरणे ) - निगलना । सू० ६६३ (ज्ञीप्सायाम् ) - पूछना | (प्राणत्यागे ) - मरना । इति तुदादयः ॥ ६ ॥ रुधादिगणस्थधातुपाठः ३७५ ( नेत्र आदि का ) | सू० ६५८ सू० ६६४ णू ( स्तवने ) -- स्तुति करना । पृङ ( व्यायामे) - उद्योग करना । टुमस्जो (शुद्धौ )--शुद्ध होना, डूबना । जुषी (प्रीतिसेवनयोः ) - प्रीति तथा सेवा जो ( भङ्ग ) -- तोड़ना । करना । भुजो ( कौटिल्ये ) - टेढ़ा होना । विजी ( भयचलनयोः ) - डरना, कांपना । उच्छृदिर् ( दीप्तिदेवनयोः ) - चमकना, खेलना । उत्तदिर् (हिंसाऽनादरयोः ) - हिंसा तथा अनादर करना । कृती ( वेष्टने ) -- कातना । हिसि (हिंसायाम् ) - हिंसा करना । उन्दी ( क्लेदने ) - भिगोना । सू० ६७६ अजू ( व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु )

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450