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परिशिष्टम
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धातवः
भाषार्थः धातवः भाषार्थः वृष (वरणे)-स्वीकार करना ।
अश (भोजने)-खाना। धून (कम्पने)-कॅपाना।
मुष (स्तेये)-चुराना। ग्रह (उपादाने)-लेना।
ज्ञा (अवबोधने) जानना। स० ६६३
वृङ् (सम्भक्तो)-सेवा करना। कुष (निष्कर्षे)-निकालना।
इति क्रयादयः॥६॥ चुरादिगणस्थधातुपाठः सू०६६४
सू० ६६७ चुर (स्तेये)-चुराना ।
गण (सङख्याने)-गिनना। सू० ६६५ कथ (वाक्यप्रबन्धे)-कहना।
इति चुरादयः॥१०॥ अथ एयन्तप्रक्रिया सू० ७००
सू०७०३ भावयति-होने के लिये प्रेरणा करता है। घटयति-चेष्टा करवाता है । . सू०७०२
ज्ञपयति-जताता है। स्थापयति-ठहराता है, रखता है।
इति ण्यन्तप्रक्रिया। अथ सनन्तप्रक्रिया स० ७०६
स०७०६ पिपठिषति-पढ़ना चाहता है। चिकीर्षति-करना चाहता है। सू० ७०७
स०७१० जिघत्सति-खाना चाहता है।
बुभूषति-होना चाहता है। अथ यङन्तप्रक्रिया सू० ७१२
। होता है। बोभूयते-बार बार या अधिक होता है ।
सू० ७२७ स० ७१४ वाव्रज्यते-टेढ़ा चलता है।
| नरीनृत्यते-बार बार वा अधिक नाचता है। सू. ७१६
जरीगृह्मते-बार बार व अधिक ग्रहण वरीवृत्यते-बार बार वा अधिक विद्यमानं | करता है।