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परिष्टिम्
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पाठी ।
प्रयोगाः भाषार्थः प्रयोगाः भाषार्थः सू० १०४६
स०१०४६ यौवनम्-युवतिसमूह।
साक्तुकम्-सतुओं का समूह ।
हास्तिकम्-हस्तिसमूह। सू० १०४७
धैनुकम्-गोसमूह । ग्रामता-ग्रामसमूह ।
सू० १०५१ जनता-जनसमूह।
वैयाकरणः-व्याकरणवेत्ता या व्याकरणबन्धुता-बन्धुसमूह । गजता-हाथीसमूह।
स० १०५२ सहायता-सहायसमूह ।
क्रमक:-क्रमपाठी। अहीनः-कई दिनों में होने वाला यज्ञ पदक:-पदपाठी ।। (सुत्याक)।
| मीमांसकः-मीमांसापाठी ।
अथ चातुरर्थिकाः सू० १०५३
कलिजा:-कलिङ्गों का निवास देश । औदुम्बर:-जिस देश में गूलर के पेड़ हों।
सू० १०५१ सू० १०५४
वरणाः-वरणा नदी के समीप होने वाला कौशाम्बी-कुशाम्ब की बसाई नगरी।
सू० १०६१ स० १०५५
कुमुद्वान्-कुमुद जिस देश में हों। शैव-शिबियों का निवास ।
नड्वान्-नड़े जिस देश में हों। स० १०५६
सू० १०६२ वैदिशम्-विदिशानगरी के समीप । वेतस्वान्-वेतस (बत )-प्रधान देश । स० १०५८
स० १०६३ पञ्चाला:-पाञ्चाल जाति का निवास देश | नड्वलः-नडप्राय देश । कुरवः-कुरुओं का निवासदेश । शादलः-घास बहुल देश । प्रजा:-अङ्गों का , "
सू०. १०६४ वना:-वों का , "
शिखावलः-शिखावान्-मयूर ।
अथ शैषिकाः सू० १०६५
औपनिषदः-उपनिषद् वर्णित (आत्मा)। चातुषम्-चतुर्णाह्य ।
दार्षदाः-पत्थर पर पीसे हुए। भावणः-श्रोत्रग्राह्य ।
चातुरम्-चार बैलों के ले जाने योग्य ।