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लघुसिद्धान्तकौमुद्याम्-परिशिष्टे
आद्यं चान्त्यं वा यत् सुगमं संविदितमुत्तरं पूर्वम् । सम्यग् लेख्यं तद् यन् “मुखमेव निरीक्ष्यते प्रथमम्” ॥६॥ अङ्कान् पूर्वं पश्येत् तदुत्तरं स्वर्णकारवत् पश्चात् । सन्तोत्यैव च लेख्यं “ यन् मान-वधारिणी बुद्धिः " ॥ ७ ॥ जातु न समयात्पूर्वं पत्रं संलिख्य चान्यथाप्येवम् । बहिरागच्छेत् केन्द्रात् " कालापेक्षी विपन्नः स्यात् ॥ ८ ॥ संलेख्यापि समस्तं पौनःपुन्येन दृश्यतां सम्यक् । आत्मस्खलनं शोध्यं “ स्खलनं प्रकृतिर्हि लोकानाम् ॥ ६ ॥ उपदिष्टो यः पूर्व सुलेखनियमो विरामादिः । सोऽप्यत्र पालनीयः "सौन्दर्यमवयवसंस्थानम्" ॥१०॥ असुपठवर्णो लेखः स्फुटपाण्डित्योऽपि सारगर्भोऽपि । सन्देहास्पदमखिलो “वर्णसङ्करविधिं नैव कुर्य्यात् ॥१६॥
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स्मरण श्रा जाया करता है । ६- सारे प्रश्नपत्र में जो भो प्रश्न पहिला अन्तिम या र ही कोई ठीक-ठीक बढ़िया श्राता हो, उसी को सब से पहिले अच्छी तरह से लिखा, सब की दृष्टि पहिले मुख पर ही पड़ती है । ७- - किसी भी प्रश्न का उत्तर लिखने से पहिले उसके नम्बर देख लो, तब उसका उत्तर नम्बरों के अनुसार सुनार के समान पूरा पूरा तोलकर संक्षिप्त या विस्तृत लिखो, बुद्धि का यही फल है कि यथोचित परिमाण की जांच करले ( 'मान - वधारली' यहाँ 'अव' के प्राकार का लोप हुप्रा है) ८- सभी प्रश्नों का उत्तर लिख चुकने पर भी समय पूरा होने से पहिल परीक्षा भवन से बाहर मत प्राप्रा, कीमती समय की उपेक्षा करनेवाले पुरुष को विपत का सामना करना पड़ता है । - सभी प्रश्नों का उत्तर लिख चुकने पर भी समय बाकी हो तो लिखे हुए उत्तरों को बार बार ध्यानपूर्वक देखना प्रारम्भ कर दो, जहाँ भी कोई प्रशुद्धि रह गई हो उसे ठीक कर लो । प्रशुद्धि हो जाना मनुष्य का स्वभाव सुलभ है । १०परिशिष्ट के २६८ पृष्ठ में लेखनियम बताये गये हैं, उनका अपने लेख में अभ्यास कर लो, परीक्षा के समय भी उन नियमों का पूर्ण पालन करो। उचित श्रवयव-विन्यास हो सौन्दर्य का कारण हुआ करता है ।
११- लेख में वरणं प्रक्षर ऐसे मत लिखो जो ठीक ठीक पढे न जा सके, या सन्देह पैदा कर देनेवाले हों । पासिडत्वपूर्ण सारगर्भित लेख भी इस दोष के कारण