________________
भाषार्थः
३८०
लघुसिद्धान्घुकौमुद्या म्
अथ भावकर्मप्रक्रिया धातवः
भाषार्थः धातवः सू० ७५२
नन्द्यते-प्रसन्न हुआ जाता है। भूयते-होना ( उससे हुआ जाता है)। | इज्यते-यज्ञ किया जाता है। स. ७५४
स. ७५५ अनुभूयते-अनुभव किया जाता है । वायते-विस्तार किया जाता है। भाव्यते-भावित किया जाता है ।
सू० ७५६ बुभूष्यते-होने के लिये इच्छा की जाती है । । | अनुतप्यते-पश्चात्ताप किया जाता है। बोभूय्यते-बार २ हुआ जाता है।
दीयते-दिया जाता है। बोभूयते-बार २ हुआ जाता है।
धीयते-धारण किया जाता है। स्तूयते-स्तुति किया जाता है।
स० ७५७ अयंते-प्राप्त किया जाता है। भज्यते-सेवा किया जाता है। स्मयते-स्मरण किया जाता है।
स० ७५८ स्रस्यते-गिरा जाता है।
लभ्यते-प्राप्त किया जाता है। अथ कर्मकत्त प्रक्रिया सू० ७६० | भिद्यते-फटता है। पच्यते-पकता है।
अथ लकारार्थप्रक्रिया स० ७६१
किया। स्मरसि कृष्ण ! गोकुले वत्स्यामः--हे
सू० ७६४ कृष्णा ! स्मरण है ? कि ( हम ) गोकुल | कदाऽऽगतोऽसि १-कब आये हो ? में रहा करते थे।
श्रयमागच्छामि-अयमागमं वा-अभी स० ७६२
श्राया था। अभिजानासि-कृष्ण ! यदनेऽभुमहि | कदा गमिष्यसि ?-कब जानोगे? हे कृष्ण ! याद है ? कि (हम) वन में | एष गच्छामि गमिष्यामि वा-अभी खाया करते थे।
जाऊँगा। सू०७६३
स. ७६५ यजति स्म युधिष्ठिर:-युधिष्ठिर ने यज्ञ कृष्ण नमेच्चेस्सुखं यायाद्-यदि श्रीकृष्ण