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परिशिष्टम्
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प्रयोगाः भाषार्थः
। प्रयोगाः भाषार्थः परमर्तः-परमगत अर्थात् मुक्त । सारङ्गः-मृग। प्रार्णम्-अधिक ऋण (कर्जा)। कुलटा-व्यभिचारिणी स्त्री। वत्सतरार्णम्-बछड़े के निमत्त ऋण ।
सूत्राङ्काः ४० कम्बलार्णम्-कम्बल का ऋण । | शिवायोन्नमः-ओं नमः शिवाय- शिव वसनार्णम्-वस्त्र का ऋण ।
के प्रति नमस्कार हो। ऋणार्णम्-एक ऋण को उतारने के शिवेहि-हे शिव ! आइये । लिये उठाया गया दूसरा ऋण।
(एवं विवृतौ) दशार्णः-दश ऋण = किले जिस देश में | कृष्णेहि--हे श्रीकृष्ण ! आइये । हों ऐसा देश ।
अवहि-समझ ले। सूत्राङ्काः ३७
सूत्राङ्काः ४२ प्रार्च्छति-अधिक चलता है।
दैत्यारिः-दैत्यों का शत्रु (विष्णु)। (एवं विवृतौ)
श्रीशः-लक्ष्मीपति भगवान् । प्रार्छत् अधिक चला।
विष्णूदयः-भगवान् विष्णु का उदय । सूत्राङ्काः ३८
होतकारः-(ऋग्वेदी) का ऋकार । प्रेजते-अधिक काँपता है।
(एवं विवृतौ) उपोषति-समीप जाता है।
खरारिः-खर दैत्य के शत्रु श्रीराम । (एवं विवृतौ)
भानूदयः-सूर्य का उदय । उपेजते-पास काँपता है।
लक्ष्मीशः-कमलापति भगवान् । प्रेषयति-भेजता है।
सूत्राङ्काः ४३ अवोषति-नीचे जाता है।
हरेऽव-हे हरि ! रक्षा करो। सूत्राङ्काः ३६
विष्णोऽव-हे विष्णु, रक्षा करो। शकन्धुः-शक देश का कूप = कुआं ।
(एवं विवृतौ) कर्कन्धुः-बदरीफल-बेर ।
स्थलेऽत्र-इस स्थान में। मनीषा-बुद्धि ।
कृष्णोऽहम्-भगवान् श्रीकृष्ण मैं हूँ। मार्तण्डः-सूर्य ।
सूत्राङ्काः ४४ सीमन्तः-केशवेश।
गो (5) अग्रम्-गौ के आगे वा गौ का हलोषा-हलदण्ड ।
अग्रभाग। लागलीषा-,
चित्रग्वग्रम्-विचित्र गोओंवाले के आगे । पतञ्जलिः-पतञ्जलि ऋषि ।
गोः-गौ का (दूध आदि)।