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लघुसिद्धान्तकौमुद्याम प्रयोगाः भाषार्थः । प्रयोगाः भाषार्थः सूत्राङ्काः ४७
| श्रा एवं नु मन्यसे-तुम अवश्य ऐसा गवानम्-गौ का अग्रभाग।
मानते हो। - (एवं विवृतौ)
श्रा एवं किल तत्-हाँ वह वस्तु ऐसी मवाक्षः-वातायन खिड़की या रोशनदान
ही थी। गवि-गौ में।
श्रोष्णम्-कुछ गर्म। सूत्राका गवेन्द्रः-गोस्वामी भगवान् श्रीकृष्ण
अहो इंशाः-श्रोह ये अधिपति हैं ।
(एवं विकृतौ) अथवा वृषम।
मिथो श्रागच्छतः-दोनों परस्पर (मिल
कर) आते हैं। श्रागच्छ कृष्ण ! अत्र गौश्चरति-आइये
अहो अद्य-श्रोह श्राज। श्रीकृष्ण ! यहाँ गौ चर रही है। अथो अपि-अनन्तर भी। सत्राङ्काः ५१
सत्राङ्काः ५७ हरी एतौ-ये दोनों हरि-सिंह हैं। विष्णो इति हे विष्णु ! यह । विष्णू इमौ-ये दोनों विष्णु- व्यापक हैं । एवं विवृतौ) गङ्गे अमू-ये दोनों गङ्गायें हैं।
भानो इति-हे सूर्य ! यह। (एवं विवृतौ)
स. ५८ धनुषी एते ये दोनों धनुष हैं। किम्बुक्तम्-क्या कहा? भानू उदयेते-दो सूर्य उदय होते हैं।
स०५६ द्व कुले उत्कृष्टे एते स्तः-ये दोनों कुल चक्रि अत्र-चक्रधारी यहाँ (है)। उत्कृष्ट हैं।
(एवं विवृतौ) सत्राङ्काः ५२
धनि आगच्छति--धनी पुरुष आता है। अमी ईशा:-ये अधिपति हैं।
सू०६० रामकृष्णावमू श्रासाते-बलराम गौ---दो गौरिय हैं। श्रीकृष्ण बैठे हैं।
वाप्यश्वः-वापी पर घोड़ा (है)। अमुकेऽत्र-ये यहाँ है।
स०६१ सूत्राङ्काः ५५
ब्रह्मर्षिः--ब्रह्म ऋषि, वशिष्ठ, याज्ञवल्क्य ६ इन्द्रः-अोह यह इन्द्र हैं।
श्रादि । उ उमेशः-जान पड़ता है यह महादेव हैं आईत्-चला गया इत्वचसन्धिः ।