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________________ परिशिष्टम् ३५५ अथ हलसन्धिप्रकरणम् प्रयोगाः भाषार्थः प्रयोगाः भाषार्थः सूत्राङ्काः ६२ पएणगर्यः-छ:नगरिय। रामश्रोते-श्री राम सोते हैं। सू०६६ रामश्चिनोति- श्री राम (फूल) चुनते हैं। सन् षष्ठः-छठा श्रेष्ठ (है)। सच्चित्--सत् स्वरूप और ज्ञानस्वरूप स०६७ ब्रह्म)। वागीश:-बृहस्पति । ञ्जिय - हे शार्ङ्गधनुषधारी भगवान् सू० ६८ आप की जय हो। एतन्मरारि:-ये भगवात् मुरारि हैं । (एवं विकृती तन्मात्रम्-तत्स्वप। कृष्णश्चपलः-श्रीकृष्ण चञ्चल हैं। चिन्मयम्-ज्ञानस्वरूप (चेतनस्वरूप) नारदश्शशाप-नारद ने शाप दिया। (एवं विवृतौ) ग्रामाचलितः ग्राम से चला। वाङ्-मधु-वाणी की मिठास । सू० ६३ सन्मनोहरम्-सत्पुरुषों के मन को हरने विश्नः-गति, अथवा प्रवेश । वाला। उन्मानम्-तोलना। प्रश्नः-पूछना। ऋः मन्त्रः-ऋग्वद का मन्त्र । सू०६४ दधिमुण्माद्यति-दहा का चोर प्रसन्न रामष्षष्ठः-श्री राम छठा है। होता है। रामष्टीकते-श्री राम जाते हैं। विपन्मयम्-विपत्तिमय। पेट-पीसने वाला। अम्मात्रम्-केवल जल । तट्टीका वह टीका। अम्मयम् - जलमय । चक्रिण्टौकसे-हे चक्रधारी ! आप जाते हैं । सू०६६ षट सन्तः-छः सत्पुरुष । तल्लयः-उसमें लय लीन होना। सूत्राङ्काः ६५ विद्वाँल्लिखति -- पण्डित लिखता है । षट ते वे छः। (एवं विवृतौ) ईट्टे-स्तुति करता है। विपल्लीनःविपत्ति में लीन । सर्पिष्टमम्-अतिशय घृत या अत्युत्कृष्ट घृत कुशॉल्लाति-कुशा ग्रहण व ता है। पण्णाम्-छः (पुरुषों) का (घर)। सु०७४ पएणवतिः-छियानबे (६६)। उत्थानम्-उठना (उन्नति)
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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