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परिशिष्टम्
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अथ हलसन्धिप्रकरणम् प्रयोगाः भाषार्थः प्रयोगाः
भाषार्थः सूत्राङ्काः ६२
पएणगर्यः-छ:नगरिय। रामश्रोते-श्री राम सोते हैं।
सू०६६ रामश्चिनोति- श्री राम (फूल) चुनते हैं। सन् षष्ठः-छठा श्रेष्ठ (है)। सच्चित्--सत् स्वरूप और ज्ञानस्वरूप
स०६७ ब्रह्म)।
वागीश:-बृहस्पति । ञ्जिय - हे शार्ङ्गधनुषधारी भगवान्
सू० ६८ आप की जय हो।
एतन्मरारि:-ये भगवात् मुरारि हैं । (एवं विकृती
तन्मात्रम्-तत्स्वप। कृष्णश्चपलः-श्रीकृष्ण चञ्चल हैं। चिन्मयम्-ज्ञानस्वरूप (चेतनस्वरूप) नारदश्शशाप-नारद ने शाप दिया।
(एवं विवृतौ) ग्रामाचलितः ग्राम से चला। वाङ्-मधु-वाणी की मिठास । सू० ६३
सन्मनोहरम्-सत्पुरुषों के मन को हरने विश्नः-गति, अथवा प्रवेश ।
वाला।
उन्मानम्-तोलना। प्रश्नः-पूछना।
ऋः मन्त्रः-ऋग्वद का मन्त्र । सू०६४
दधिमुण्माद्यति-दहा का चोर प्रसन्न रामष्षष्ठः-श्री राम छठा है।
होता है। रामष्टीकते-श्री राम जाते हैं।
विपन्मयम्-विपत्तिमय। पेट-पीसने वाला।
अम्मात्रम्-केवल जल । तट्टीका वह टीका।
अम्मयम् - जलमय । चक्रिण्टौकसे-हे चक्रधारी ! आप जाते हैं ।
सू०६६ षट सन्तः-छः सत्पुरुष ।
तल्लयः-उसमें लय लीन होना। सूत्राङ्काः ६५
विद्वाँल्लिखति -- पण्डित लिखता है । षट ते वे छः।
(एवं विवृतौ) ईट्टे-स्तुति करता है।
विपल्लीनःविपत्ति में लीन । सर्पिष्टमम्-अतिशय घृत या अत्युत्कृष्ट घृत कुशॉल्लाति-कुशा ग्रहण व ता है। पण्णाम्-छः (पुरुषों) का (घर)।
सु०७४ पएणवतिः-छियानबे (६६)। उत्थानम्-उठना (उन्नति)