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________________ ३५६ प्रयोगाः उत्तम्भनम् उभारम्भ । ( एवं विवृतौ ) भाषार्थः उत्त्थापयति-उठ्ठाता है । सू० ७५ वाग्घर : - वाक् सिंह (बोलने में शेर ) । ( एवं विवृतौ ) तद्घानम् - वह हानि । सम्पद्धानिः सम्पत्ति की हानि । ककुन्नभासः - दिशा का खिलना - प्रकाश होना । हरिं वन्दे - लघुसिद्धान्तकौमुद्याम् प्रयोगाः भाषार्थः कुण्ठितः - कुण्ठित ( रुका हुआ) ग्रन्थः- पुस्तक । दान्तः-जितेन्द्रिय । गुम्फित था । सू० ८० स्व करोषि - तुम करते हो । सू० ७८ यशांसि - (बहुत से) यश | श्राक्रस्यते- - श्राक्रमण किया जायगा । मन्यसे - तुम मानते हो । ( एवं विवृतौ ) वासांसि वस्त्र (बहुत से) प्रस्यते - प्रणाम किया जायेगा । सू० ७६ च्छिवः - वह शिव ( है ) । तच्छ्लोकेन-उसकी कीर्त्ति से । ( एवं विवृतौ ) एतच्छान्तम्- यह (श्राश्रमपद ) शान्त 1 सू० ७७ सू० ८२ ३- भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ | किं ालयति - क्या (हाथी) जाता है ? किं ह्यः - कल क्या ( होगा ) किं ह्वलयति - क्या (हाथी) जाता है । किं ह्लादयति-कौन ( वस्तु ) प्रसन्न करती है ? सू० ७६ शान्तः- शान्त (पुरुष) ( एवं विवृतौ ) अङ्कितः - चिह्नित । चितः - पति । ( एवं विवृतौ ) स्वम्पचसि - स- तुम पकाते हो । मृत्युञ्जय - मृत्यु को जीतो । दानय्यच्छति - दान देता है । सँव्वसरः- वर्ष (सवत्)। सुन्दर लिखामि - मैं हँल्लिखमि - मैं लिखता हूँ । सू० ८१ सम्राट् चकवर्ती । सुन्दर लिखता हूँ । सू० ८३ किं हनुते क्या छिपाता है ? ०८४ षटु सन्तः-छः सत्पुरुष । सू० ८६ प्राङ् षष्ठः- छठा सुप्रतिष्ठित है । सगस्षष्ठः - छठा अच्छा गणित जानता है
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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