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________________ प्रयोगाः ३५२ . लघुसिद्धान्तकौमुद्याम् प्रयोगाः · भाषार्थः भाषार्थः गनोदकम् गङ्गा का जल । कृष्णोत्कण्ठयम्-भगवान् श्रीकृष्ण में (एवं विवृतौ) उत्कएठा। गजेन्द्रः-यूथपति गज-हस्तिराज । (एवं विवृतौ) रमेशः-लक्ष्मीपति भगवान् । पञ्चैते-ये पाँच। सूर्योदयः-सूर्य का उदय । तण्डुलौदनम्-चावलों का भात । परीक्षोत्सुकः-परीक्षार्थ उत्कण्ठित । माधवैधनम्-माधव की वृद्धि । सूत्राङ्काः २६ रामौत्सुक्यम् - श्रीराम में उत्कण्ठा । कृष्णःि -भगवान् श्रीकृष्ण की समृद्धि । सूत्राङ्काः ३४ तवल्कारः-तेरा लुकार । उपैति-समीप पहुँचता है। (एवं विवृतौ) उपैधते-समीप बढ़ता है। वसन्तु:-वसन्त ऋतु । प्रष्ठौहः-उद्दण्डता दूर करने के लिये राजर्षिः राजऋषिः हरिश्चन्द्र जनक आदि जिसके गले में काष्ठ बांध देते हैं ममल्कारः-मेरा लकार। ऐसे बछड़े को प्रष्टवाट कहते हैं सूत्राङ्काः ३१ (तम्य प्रष्टौहः) प्रष्टवाट का। हर इह-हे हरि ! यहाँ (आरओ)। __(एवं विवृतौ) विष्ण इह-हे विष्णु ! यहाँ (आरओ) । अपैति-पृथक होता है। (एवं विवृतौ) अवैधसे-तुम बढ़ते हो। शौर इह-हे शौरि ! यहाँ (पाश्रो)। . उपेतः-समीप पहुँचा। प्रभो इदानीम-हे प्रभु! अब (सख है)। माभवान् प्रेदिधत्-आप अधिक न बढ़ाय। श्रिया उत्कण्ठित-शोभा के लिये उत्सुक। अक्षौहिणी-सेनाविशेष । भाना उत्सकः-सूर्य में उत्कण्ठित ।ौहः-उत्तम तर्क । गुरा आयाते-गुरुजी के आने पर। प्रौढ़ः-बढ़ा हुआ। सत्राङ्काः ३३ प्रौढिः-प्रौढता। कृष्णकत्वम-भगवान् श्रीकृष्ण की एकता प्रेषः-प्रेरणा । गङ्गोषः-गङ्गा का प्रवाह । प्रेष्यः सेवक-प्रेरणीय । देवैश्वर्यम्-देवताओं का ऐश्वर्य। सुखातः-प्राप्तसुख-सुखी । १-२१८७० हाथी । २१८७० रथ । ६५६१० घोड़े । १०९३५० पैदल जिस सेना में हों वह सेना अक्षौहिणी कहलाती है।
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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