Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01
Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

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Page 386
________________ ३६५ -.. - - -- परिशिष्टम् प्रयोगा. भाषार्थः प्रयोगाः भाषार्थः अग्निमत्--अग्निमन्थक। दरिद्रत्-दरिद्र होता हुआ। स०३३४ शासत्-शासन करता हुआ। प्राङ्-सुगति या सुपूजक। चकासत्-दीप्त होता हुआ। स० ३३६ गुप्-रक्षक। प्रत्यङ्-प्रतीचीन, पश्चिम दिशा। सू० ३४८ उदङ-उत्तरदिशा या तद्भव । | तादृक्-वैसा। सू० ३३८ विट-बनिया, प्रजा। सम्यङ्-ठीक चलनेवाला। । सू० ३४६ सू० ३३६ नक्-नष्ट होनेवाला। सध्य-साथी । सू. ३५० सू० ३४० तिर्यङ्-टेढा चलनेवाला पशु-पक्षी । घृतस्पृक्-घी छूनेवाला। स० ३४१ दधृक्-तिरस्कर्ता। क्रुङ-क्रौञ्चपक्षी ! रत्नमुट्-रत्नों का चोर। पयोमुक्-बादल । षट-छे । सू० ३५१ स० ३४२ पिपठी:-पठनेच्छुक । महान्-बड़ा। सू० ३५२ सू० ३४३ चिकी:-करणेच्छुक। धीमान्-बुद्धिमान् । विद्वान्-पण्डित । भगवान्-श्राप । स० ३५४ भवन्-होता हुश्रा। पुमान्-पुरुष । स० ३४५ उशना-शुक्राचार्य । ददत्-देता हुआ। अनेहा-समय । सू. ३४६ वेधाः--ब्रह्मा। जात्-खाता हुआ। सू० ३५५ जाग्रत्-जागता हुआ। असौ-वह (पुरुष)। इति हलन्तपुल्लिङ्गप्रकरणम्

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