Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01
Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

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Page 370
________________ भाषार्थः धातुरूपम् विषीदति-दुःखी होता है। निषीदति-बैठता है। अवसीदति-थकता है। ष्ठा-गतिनिवृत्तौतिष्ठति-ठहरता है। प्रतिष्ठते-जाता है। अनुतिष्ठति-करता है। संतिष्ठते-मरता है। उत्तिष्ठति-उठता है। उपतिष्ठते-उपस्थित होता है। सृ-गतो सरति-जाता है। प्रसरति-फैलता है। अनुसरति-पीछे जाता है। निःसरति-निकलता है। अपसरति-हटता है। परिसरति-घूमता है। चर-गतीचरति-घूमता है। दुराचरवि-दुराचरण करता है। आचरति-व्यवहार करता है। उपचरति-सेवा करता है। अनुचरति-पीछे चलता है। परिचरति-सेवा करता है। संचरति-घूमता है। तृ-प्लवनतरणयोःतरति-तरता है। अवतरति-उतरता है। वितरति देता है। परिशिष्टम् ३४६ | धातुरूपम् মাথ द्र-गतो। द्रवति-पिघलता है। उपद्रवति-उपद्रव करता है। विद्रवति-भागता है। पत्ल-पतनेपतति-गिरता है। प्रणिपतति-प्रणाम करता है। आपतति-पा पड़ता है। उत्पतति-उड़ता है। रमु-क्रीडायाम्रमते-खेलता है। विरमति-हटता है। उपरमात-उपरत होता है। असु-क्षेपणे अस्यति-फेंकता है। अभ्यस्यति-अभ्यास (याद ) करता है। निरस्यति-निकालता है। आस-उपवेशने। श्रास्ते-बैठता है। अध्यास्ते-अधिकार करता है। उपास्ते-पूजा करता है। इण-गतो एति-जाता है। अवैति-समझता है। प्रत्येति-विश्वास करता है। व्येति-खर्च करता है। उदेति-उगता है। उपैति-प्राप्त करता है। अभ्येति-आगे आता है।

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