________________
सिणधरी नगर की संक्षिप्त झलक
नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ के समान ही सिणधरी भी वन्दनीय और स्मरणीय है क्योंकि नाकोड़ा पार्श्वनाथ की प्रतिमा सिणधरी के सरोवर से ही प्रकट हुई थी और जिसे खरतरगच्छाचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी ने वीरमपुर-महेवा में स्थापित की थी। यह प्रतिमा अत्यन्त अलौकिक चमत्कारों से परिपूर्ण होने के कारण नाकोड़ा पार्श्वनाथ के नाम से भारत भर में प्रसिद्ध है। - सिणधरी नगर के मध्य में दो मन्दिर हैं। दोनों ही शिखरबद्ध हैं। प्रथम मन्दिर में मूलनायक आदिनाथ भगवान् हैं और आस-पास में महावीर स्वामी और चन्द्रप्रभ हैं। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा खरतरगच्छ की शाखा भावहर्ष के आचार्यों ने १०८ वर्ष पूर्व करवाई थी। शासनदेवी चक्नेश्वरी हाजरा -हजूर है और इनके कई चमत्कार भी लोगों ने देखे हैं । इस मन्दिर में अखण्ड ज्योत में धुएं के स्थान पर केसर के ही दर्शन होते हैं। दूसरे मन्दिर के मूलनायक चन्द्रप्रभु हैं और आजु-बाजु भी । उन्हीं की मूर्तियाँ है । इस मन्दिर में भी अखण्ड ज्योत में केसर के दर्शन होते हैं। _प्रथम मन्दिर के सभा मण्डप में गौड़ी पार्श्वनाथ के चरण तथा दादा जिनदत्तसूरि एवं जिनकुशलसूरिजी के चरण स्थापित थे और इन चरणों का जीर्णोद्धार करते हुए स्वतन्त्र दादाबाड़ी की प्रेरणा १७ वर्ष पूर्व श्री सुरअनाश्रीजी महाराज के प्रवचनों से हुई थी। सुरञ्जनाश्रीजी महाराज के उपदेश से प्रभावित होकर तीन कुमारिकाओं विमला, ललिता और मीना ने २५ अप्रैल १९९३ को गणिवर्य श्री मणिप्रभसागरजी के कर-कमलों से दीक्षा हुई और उनके दीक्षित नाम क्रमशः इस प्रकार रखे गए मुक्ताञ्जनाश्री, अमृताञ्जनाश्री, मोक्षाअनाश्री । सिणधरी का सौभाग्य है कि तपागच्छ में भी यहाँ की बहिनों ने दीक्षा ग्रहण की।
हमारा सौभाग्य है के पूज्य गणिवर्य श्री मणिप्रभसागरजी का चातुर्मास भी सन् १९९८ में यहाँ हुआ। चातुर्मास के पश्चात् यहाँ से माण्डवला का संघ भी निकाला गया और जहाज मन्दिर माण्डवला में स्वर्गीय पूज्य श्री कान्तिसागरजी महाराज के स्वर्ग जयन्ती के मेले का भी लाभ हमें मिला | पूज्य गणाधीश उपाध्याय श्री कैलाशसागरसूरिजी महाराज से आज्ञा प्राप्त कर संवत् २०६२ का चातुर्मास भी पूज्या साध्वीवर्या श्री सुरञ्जनाश्रीजी महाराज ने अपने साध्वी मण्डल के साथ किया। इस चातुर्मास में यह नगरी तपोभूमि के रूप में बदल गई । छोटी सी आबादी होते हुए भी ११ मासक्षमण, ४६ सिद्धितप,२१,१६.१५.११.१० और ८ की विभिन्न तपस्याएँ हुई।
दादाबाड़ी का जीर्णोद्धार मन्द गति से बढ़ता रहा । समय-समय पर साध्वीजी महाराज का मार्ग दर्शन भी मिलता रहा । जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण हो चुका है और प्रतिष्ठा का कार्य भी शीघ्र ही ३ मई २००६ तदनुसार वैशाख शुक्ला ६ विक्रम संवत २०६३ को सम्पन्न होगा । गच्छाधिपति उपाध्याय श्री कैलाशसागरजी महाराज की निश्रा में और जीर्णोद्धार प्रेरिका साध्वीश्री सुरञ्जनाश्रीजी महाराज साध्वी मण्डल की सान्निध्यता में यह ऐतिहासिक कार्य पूर्ण होगा।
इसी प्रसंग पर इसी दिन हमारे नगर की लाडली मुमुक्षु कुमारी ममता मुणोत की भी दीक्षा पूज्य सुरञ्जनाश्रीजी महाराज के कर कमलों से होगी।
श्री खरतरगच्छ सकल जैन श्रीसंघ
सिणधरी
Jain Education International
For
anal & Private Use Only