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जेसलमेर नरेश कर्णदेव - सं० १३४० में फाल्गुन में श्रीजिनप्रबोधसूरिजी जेसलमेर पधारे। नगर प्रवेश बड़े समारोह से हुआ। राजा कर्ण ससैन्य दर्शनार्थ सामने आया। महाराजा के आग्रह से चातुर्मास भी उन्होंने वहीं किया।
जावालिपुर का राजा सामन्तसिंह - सं० १३४२ ज्येष्ठ कृष्णा ९ को, जालोर में महाराजा सामन्तसिंह के सान्निध्य मे अनेक जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा और इन्द्रमहोत्सव सम्पन्न हुआ।
शम्यानयन का महाराजा सोमेश्वर चौहान - सं० १३४६ फाल्गुन शुक्ला ८ को, महाराजा सोमेश्वरकारित विस्तृत प्रवेशोत्सव से श्रीजिनचन्द्रसूरिजी शम्यानयन पधारे। सा० बाहड, भां० भीमा, जगसिंह, खेतसिंह सुश्रावकों के बनवाए हुए प्रासाद में उन्होंने शान्तिनाथ प्रभु की स्थापना की।
जेसलमेर नरेश जैत्रसिंह - सं० १३५६ में राजाधिराज जैत्रसिंह की प्रार्थना को मान दे कर, श्रीजिनचन्द्रसूरिजी, मार्गशीर्ष शुक्ला ४ को जेसलमेर पधारे। पूज्यश्री के स्वागतार्थ महाराजा ८ कोष सम्मुख गये। सं० १३५७ मार्गशीर्ष कृष्णा ९ को, महाराजा जैत्रसिंह के भेजे हुए वाजित्रों की ध्वनि के साथ मालारोपण व दीक्षा महोत्सव सम्पन्न हुआ।
शम्यानयन नरेश शीतलदेव - सं० १३६० में महाराजा शीतलदेव की वीनति और मन्त्री नाणचन्द्र आदि की अभ्यर्थना से श्रीजिनचन्द्रसूरिजी शम्यानयन पधारे और शान्तिनाथ भगवान के दर्शन किये।
सुलतान कुतुबुद्दीन - सं० १३७४ में, मन्त्रीदलीय ठक्कुर अचलसिंह ने बादशाह कुतुबुद्दीन से सर्वत्र निर्विघ्नतया यात्रा करने के लिये फरमान प्राप्त कर नागौर से संघ निकाला। मारवाड़ और वागड़ देश के नाना नगरों को पार कर, संघ दिल्ली पहुँचा। श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने दिल्ली की खण्डासराय में चातुर्मास किया। पश्चात् सुलतान व संघ के कथन से प्राचीन तीर्थस्थान मथुरा यात्रा करने पधारे।
मेड़ता का राणा मालदेव चौहान - सं० १३७६ में राणा मालदेव की प्रार्थना से श्रीजिनचन्द्रसूरिजी मेड़ता पधारे और वहाँ राणा व संघ की प्रार्थना से २४ दिन ठहरे।
दिल्लीपति गयासुद्दीन बादशाह - सं० १३८० में दिल्लीनिवासी सेठ रयपति के पुत्र सा० धर्मसिंह ने प्रधानमन्त्री नेब साहब की सहायता से सम्राट गयासउद्दीन द्वारा तीर्थयात्रा का फरमान निकलवाया, और श्रीजिनकुशलसूरिजी के नेतृत्व में शत्रुञ्जयादि तीर्थों का संघ निकाला।
सं० १३८१ में भीमपल्ली के सेठ वीरदेव ने भी सम्राट से तीर्थयात्रा का फरमान प्राप्त कर श्रीजिनकुशलसूरिजी के उपदेश से शत्रुञ्जयादि तीर्थों के लिये संघ निकाला।
सौराष्ट्रनरेश महीपालदेव - सं० १३८० में शत्रुञ्जय यात्रा के प्रसंग में सेठ मोखदेव को, सौराष्ट्रमहीमण्डनभूपाल महीपाल देव को दूसरी देह सदृश अर्थात् अत्यन्त प्रभावशाली लिखा है।
बाहडमेर नरेश राणा शिखरसिंह - सं० १३९१ में श्रीजिनपद्मसूरिजी वाग्भटमेरु पधारे। उस समय चौहानकुलप्रदीप राणा शिखरसिंह, राजपुरुष व नागरिकजनों के साथ सूरिजी के सन्मुख
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