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रचित द्वादशकुलक को आधार बनाकर श्रावक गणदेव ने वागड़ देश में लाखों खरतरगच्छ के अनुयायी बनाये।
जिनदत्तसूरि ने १,३०,००० नये जैन बनाकर,
नये गोत्रों में सम्मिलित कर उपदेश का एक
नया स्रोत बहाया था ।
मणिधारी जिनचन्द्रसूरि ने महत्तियाण जाति और उनके गोत्रों की स्थापना कर नया कीर्तिमान स्थापित किया था। महत्तियाण जाति और श्रीमाल आज भी खरतरगच्छ की आणा को स्वीकार करते हैं । जिनपतिसूरि के समय में महाराजा पृथ्वीराज चौहान की राजसभा में सेठ रामदेव जो कि महाराजा पृथ्वीराज और मन्त्री कैमास का अत्यन्त प्रिय था, वह आचार्यश्री का भक्त था और आचार्यश्री का सम्बन्धि भी था । सेठ क्षेमन्धर जिनका की पुत्र प्रद्युम्नाचार्य चैत्यवासी आचार्यों का सिरमोर था, वह भी आचार्य श्री का भक्त था । माण्डव्यपुर का सेठ लक्ष्मीधर, नेमिचन्द भाण्डागारिक बृहद्वार का आसराज राणक, ठाकुर विजयसिंह, सेठ स्थिरदेव आदि जिनपतिसूरि के प्रमुख भक्त थे ।
जिनेश्वरसूरि के प्रमुख भक्त थे - जाबालीपुर के सेठ यशोधवल, श्रीमालनगर के सेठ जगधर, पालनपुर के सेठ भुवनपाल, ठाकुर अश्वराज, सेठ राल्हा, महं. कुलधर, सेठ धीधाक, क्षेमसिंह, बाड़मेर के सहजाराम के पुत्र बच्छड़, मोल्हाक, कुमारपाल, सेठ भुवन, सेठ हरिपाल, सेठ मूलदेव, सेठ सावदेव, पूर्णसिंह, बोधा, धारसिंह, धान्धल, आसनाग, भोजाक, सेठ नेमिकुमार, सेठ गणदेव, आदि । अभयचन्द्र, देदाक, श्रीपति, मूलिक, पेड़, देदा, आदि ने जिनेश्वरसूरि की अध्यक्षता में शत्रुञ्जय का संघ निकाला था। इस संघ में कई प्रमुख श्रेष्ठ लोग थे । आचार्य के उपदेश से सेठ क्षेमसिंह, महम. पूर्णसिंह और महं. ब्रह्मदेव ने अनेक बिम्ब भरवाये थे।
जिनप्रबोधसूरि के प्रमुख भक्तों में सेठ क्षेमसिंह, दिल्ली निवासी दलिक हरू, सेठ हरिचन्द, चाहड़, हेमचन्द्र, हरिपाल, पूर्णपाल, भीमसिंह, मन्त्री महणसिंह, आदि ने मिलकर शत्रुञ्जय महा का यात्री संघ निकाला था और अनेक श्रेष्ठियों ने मूर्ति स्थापन का सौभाग्य भी प्राप्त किया था ।
र के सेठ मोहन, सेठ आसपाल, मन्त्री विन्ध्यादित्य, ठाकुर उदयदेव, भाण्डागारिक लक्ष्मीधर आदि ने आचार्य का बीजापुर में प्रवेशोत्सव किया था । १३३९ में जाबालीपुर का प्रवेशोत्सव मन्त्री पूर्णसिंह, भण्डारी राजा, जिसड़, देवीसिंह, मोहा आदि ने किया था।
कलिकाल केवली जिनचन्द्रसूरि के समय सेठ क्षेमसिंह, महामन्त्री देदा, भण्डारी छाहड़ ने इनके उपदेश से जिनबिंब भरवाए थे । सेठ बाहड़, भाण्डागारिक भीम, जगसिंह और खेतसिंह ने महाराजा सोमेश्वर चौहान की सान्निध्य में आचार्य का गढ़सिवाना में और सेठ लखमसिंह, आसपाल ने बीजापुर में प्रवेशोत्सव कराया था । संघपति अभयचन्द्र सेठ, वरडिया नगर के मुख्य श्रावक नौलखा झांझड़ को दीक्षा दी थी । १३५२ में बड़गाँव के चाहड़, ठक्कर हेमराज, मूलदेव आदि ने पूर्वदेश की यात्रा की थी। सेठ सलखण, सेठ सीहा, माण्डव्यपुर वासी सेठ मोहन आदि ने आबू तीर्थयात्रा के लिए
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