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गये और महोत्सवपूर्वक उनका नगरप्रवेश कराया।
सांचोर( सत्यपुर ) का राणा हरिपालदेव - सं० १३९१ में श्रीजिनपद्मसूरिजी बाहड़मेर से सत्यपुर पधारे उस समय राणा हरिपालदेव आदि उनके स्वागतार्थ सन्मुख गये।
आशोटा का राजा उदयसिंह - सं० १३९३ में पाटण से नारउद्र होते हुए श्रीजिनपद्मसूरिजी आशोटा पधारे। उस समय वहाँ का राजा रुद्रनन्दन, राज० गोधा सामन्तसिंहादि के साथ स्वागतार्थ पूज्यश्री के सन्मुख आया।
बूजद्री का राजा उदयसिंह - सं० १३९३ में श्रीजिनपद्मसूरिजी बूजद्री पधारे। वहाँ सुश्रावक मोखदेव ने राजा उदयसिंह एवं समस्त नागरिकों के साथ सूरिजी का बड़े समारोह से नगर प्रवेश कराया। इसके बाद अन्यत्र विहार करके सूरिजी फिर वहाँ पधारे तब भी राजा उदयसिंह प्रवेशोत्सव में सम्मिलित हुआ था।
__ त्रिशृङ्गम नरेश रामदेव - सं० १३९३ में, जिनपद्मसूरिजी त्रिशृङ्गम पधारे । मन्त्रीश्वर सांगण के पुत्र मण्डलिकादिक ने, महाराजा महीपाल के अंगज महाराजा रामदेव की आज्ञा से राजकीय वाजित्रों के साथ बड़े समारोहपूर्वक प्रवेशोत्सव किया। सूरिजी को संघ के साथ चैत्यपरिपाटी करते समय उनकी प्रशंसा सुन कर महाराजा के चित्त में उनके दर्शन की उत्कण्ठा जागृत हुई। महाराजा के अनुरोध पर सूरिजी राजसभा में पधारे।
___ नृपति ने उन्हें आते देख कर, राजसिंहासन से नीचे उतर कर, उनकी चरणवन्दना की। पूज्यश्री आशीर्वाद दे कर चौकी पर विराजे । महाराजा सारङ्गदेव के व्यास ने अपनी रचना पढ कर सुनाई, जिसमें श्री लब्धिनिधान उपाध्यायजी ने कई त्रुटियां बतलाईं । महाराजा रामदेव कहने लगे - 'उपाध्यायजी का वचनचातुर्य और शास्त्रीय ज्ञान असाधारण है । इन्होंने तो हमारे व्यासजी की त्रुटियाँ बतलाई।' इसी प्रकार अन्य सभासदों ने उपाध्यायजी की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
____ महामन्त्री वस्तुपाल का उल्लेख - सं० १२८९ में श्री जिनेश्वरसूरिजी के खम्भात पधारने पर महामात्य वस्तुपाल ने बड़े समारोह से उनका नगर प्रवेशोत्सव किया था। गुर्वावली में श्रीजिनकुशलसूरिजी के खम्भात पधारने पर भी इस उत्सव की याद दिलाई गई है।
सुल्तान कुतुबुद्दीन - जिनप्रभसूरि के गुणों पर वह मुग्ध था। अट्ठाही, अष्टमी, चतुर्दशी को सम्राट आपको सभा में आमंत्रित किया करता था।
सम्राट मोहम्मद तुगलक - जिनप्रभसूरि ने अपने वैदुष्य और चमत्कारों से मोहम्मद तुगलक को प्रभावित किया। सं० १३८५ में राजकीय सम्मान से दिल्ली में प्रवेश किया। सम्राट के सम्पर्क में रहने लगे। सम्राट से कई फरमान प्राप्त किए। विशेष परिचय के लिए देखें:- (महोपाध्याय विनयसागर द्वारा लिखित शासन प्रभावक आचार्य जिनप्रभ और उनका साहित्य)
जेसलमेर का महारावल लक्ष्मण - जिनवर्द्धनसूरि के ये परम भक्त थे। और इन्हीं की
प्राक्कथन
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