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जिनपतिसूरि लवणखेटक पधारे। वहाँ 'दक्षिणावर्त आरात्रिकावतारणोत्सव' बड़ी धूमधाम से मनाया।
नगरकोट का राजा पृथ्वीचन्द्र - सं० १२७३ में (बृहद्वार) में गंगादशहरे पर गंगा-स्नानके लिये बहुत से राणाओं के साथ महाराजाधिराज श्रीपृथ्वीचंद्र नगरकोट से आया। उसके साथ पं० मनोदानन्द नामक एक काश्मीरी पण्डित भी था। उसने श्री जिनपतिसूरि के उपाश्रय पर शास्त्रार्थ के चैलञ्ज का नोटिश लगा दिया। तब सूरिजी के शिष्य जिनपालोपाध्याय आदि शास्त्रार्थ के लिये महाराजा पृथ्वीचन्द्र की सभा में आये, और वाद-विवाद में उक्त पण्डित को परास्त कर दिया। महाराजा ने पण्डित के चैलेञ्ज को फाड़ कर उपाध्यायजी को जयपत्र दिया।
पालनपुर का राजकुमार जगसिंह - सं० १२८८ में पालनपुर के सेठ भुवनपाल ने, राजकुमार जगसिंह की उपस्थिति में ध्वजारोपण का उत्सव बड़े समारोह से मनाया।
जावालिपुर का राजा उदयसिंह - सं० १३१० वैशाखा-सुदि १३ शनिवार स्वाति नक्षत्र के दिन, श्रीमहावीर विधिचैत्य में, राजा व प्रधान पुरुषों की उपस्थिति में राजमान्य महामन्त्री जैत्रसिंह के तत्त्वावधान में, पालनपुर, वागड़देश आदि के श्रावकों के एकत्र होने पर श्री चौवीस जिनालय आदि की प्रतिष्ठा, दीक्षादि महामहोत्सव पूर्वक हुई।
सं० १३१४ में माघ सुदि १३ को राजा उदयसिंह के प्रमोदपूर्ण सान्निध्य से कनकगिरि के मुख्य मंदिर पर ध्वजारोपण हुआ।
स्वर्णगिरिका चाचिगदेव- सं० १३१६ में माघ सुदि६ को, राजा चाचिगदेव के राज्यत्वकाल में स्वर्णगिरि के शान्तिनाथ मंदिर पर स्वर्णमय ध्वजदंड व कलश स्थापित किये गये।
भीमपल्ली का राजा माण्डलिक - सं० १३१७ वैशाख सुदि १० सोमवार को, भीमपल्ली में राजा माण्डलिक के राज्यत्वकाल में दण्डनायक श्रीमीलगण (?) के सान्निध्य में महावीर जिनालय पर स्वर्णदण्ड-कलशादि चढाये गये।
चित्तोड़ का महाराजा समरसिंह - सं० १३३५ फाल्गुन वदि ५ को, महाराजा समरसिंह के रामराज्य में चित्तोड़ के चौरासी मुहल्ले में जलयात्रा पूर्वक स्थानीय ११ मंदिरों के ११ छत्र व मुनिसुव्रत, आदिनाथ, अजितनाथ, वासुपूज्य प्रभु की प्रतिमाएं स्थापित की गईं।
चित्तोड़ के युवराज अरिसिंह - सं० १३३५ फाल्गुन शुक्ल ५ को, सकल राज्यधुरा को धारण करने वाले राजकुमार अरिसिंह के सान्निध्य से आदिनाथ मंदिर पर ध्वजारोप हुआ।
बीजापुर नरेश सारङ्गदेव - सं० १३३७ ज्येष्ठ कृष्णा ४ शुक्रवार को महाराजाधिराज सारङ्गदेव के रामराज्य में, महामात्य मल्लदेव व उपमंत्री विन्ध्यादित्य के कार्यकाल में, बीजापुर में श्रीजिनप्रबोधसूरिजी का नगर प्रवेश बड़े समारोह से हुआ। विन्ध्यादित्य सूरिजी की स्तुति करता था।
शम्यानयन (सिवाना) का राजा श्रीसोम - सं०. १३४० में श्रीजिनप्रबोधसूरिजी ने सन्मुख आये हुए श्रीसोम महाराजा की वीनति स्वीकार कर शम्यानयन में चातुर्मास किया।
प्राक्कथन
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