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सबसे बड़ी दौलत है। इसी तरह महान तत्त्ववेत्ता उपाध्याय देवचन्द्रजी महाराज और योगीराज आनंदघनजी महाराज के द्रव्यानुयोग और दार्शनिक भावधाराओं से भरे हुए गीत सम्पूर्ण जैन समाज में गाये और गुनगुनाये जाते हैं । निश्चय ही ये वे गीत हैं जिन्हें गाते हुए तत्त्व चिंतक लोग भी सजल हो उठते हैं।
खरतरगच्छ का समग्र साहित्य सरस्वती का विराट भंडार है। खरतरगच्छ की एक हजार वर्ष की साहित्य साधना पर न केवल जैन समाज अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र को गौरव है ।
वर्तमान युग में भी आचार्य श्री जिनकवीन्द्रसागरसूरिजी महाराज वे लोकप्रिय कवि हुए जिनकी रचनाओं ने जैन समाज को भक्ति का अनुपम प्रसाद प्रदान किया है। आचार्यश्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज खरतरगच्छ के तेजस्वी विद्वान हुए जिनके ग्रन्थ धर्म शास्त्रों के बारे में सदा मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी महाराज, प्रवर्तिनी साध्वी श्री विचक्षण श्रीजी महाराज, आगमज्ञा साध्वी श्री सज्जनश्रीजी, साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी, साध्वी श्री मणिप्रभाश्रीजी, आदि अनेक ऐसे साधुसाध्वीजन हैं जिनके साहित्य ने वर्तमान काल को ज्ञान का नया प्रकाश प्रदान किया है।
यदि हम वर्तमान शताब्दी में खरतरगच्छ के सबसे प्रमुख साहित्यकार का उल्लेख करना चाहें तो श्री अगरचंदजी नाहटा, श्री भँवरलालजी नाहटा और महोपाध्याय श्री विनयसागरजी के नाम उल्लेखनीय हैं। श्री अगरचंदजी नाहटा जैसे इतिहासवेत्ता तो देश में सौभाग्य से ही जन्म लेते हैं । उन्होंने न केवल साहित्य, इतिहास और पुरातत्त्व से जुड़े हुए दस हजार लेख लिखे, वरन् विद्वानों की सभा में वे एक चलती-फिरती लाइब्रेरी के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे। भँवरलालजी नाहटा और विनयसागरजी जैसे विद्वानों ने खरतरगच्छ के प्राचीन साहित्य के लिए जितना कुछ दिया है वह अपने आप में अनुपम और अतुलनीय है। अगरचन्दजी और भँवरलाल जी दोनों ही स्वर्गस्थ हो चुके हैं। पुरानी पीढ़ी के विद्वानों में अब एक अकेले विद्वान बचे हैं - महोपाध्याय विनयसागरजी ।
साहित्य और ज्ञान-परम्परा में जिनका नाम मैं सम्मान पूर्वक उपयोग करना चाहूंगा वे है पूण्य श्री चन्द्रप्रभ जी, जिन्होंने ज्ञान और साहित्य की पारस्परिक शैली से ऊपर उठकर मानवता को अपनी सैकड़ों पुस्तकें प्रदान की हैं। जिन्हें न केवल समाज में वरन् आम जन मानस में बड़े भाव से पढ़ा और सुना जाता है।
खरतरगच्छ का साहित्य तो विशाल सागर की तरह है। शायद ही ऐसा कोई विषय हो, जिस पर खरतरगच्छ के साहित्य - मनीषियों ने अपनी कलम न चलाई हो । यों तो खरतरगच्छ के आचार्यों और विद्वानों के द्वारा लिखित साहित्य देशभर के ज्ञान भंडारों में उपलब्ध हैं। यदि हम एक अकेले जैसलमेर ज्ञान भंडार का भी उल्लेख करें तो वह खरतरगच्छ का एक ऐसा ज्ञान भंडार है जिसमें हजारों प्राचीन ताड़पत्रीय एवं हस्तलिखित ग्रन्थ हमारी प्राचीन विरासत को अपने में समेटे हुए है। भला जिस खरतरगच्छ का साहित्य इतने विशाल पैमाने पर रचा गया हो उन सबका प्रकाशन और प्रसारण सम्पूर्ण खरतरगच्छ का सबसे बड़ा दायित्व है। किसी भी पंथ - सम्प्रदाय को मात्र भक्ति और प्रतिष्ठा बल पर ही जीवित नहीं रखा जा सकता। ज्ञान, चिंतन और योग के बल पर किसी भी पंथ-परम्परा का विश्व व्यापी प्रसार संभव हो सकता है।
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