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भाष्य, पञ्चनिर्गन्थी प्रकरण, जिनेश्वरसूरि कृत श्रावकधर्मविधि प्रकरण, नेमिचन्द भांडागारिक कृत षष्टिशतकप्रकरण, गजसारगणि कृत विचारषट्त्रिंशिका आदि अनेकों प्रकरण ग्रन्थ प्राप्त हैं।
____ कथाग्रन्थों में जिनेश्वरसूरि कृत निर्वाण लीलावती, कथाकोष, देवभद्राचार्य कृत कथारत्नकोष, पार्श्वनाथ चरित्र, महावीर चरित्र, वर्द्धमानसूरि कृत आदिनाथ चरित्र, मनोरमा चरित्र, धर्मरत्न करण्डक, गुणसमृद्धि महत्तरा कृत अञ्जनासुन्दरी चरित्र आदि अनेक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं।
___ पूर्वोल्लिखित महाकाव्यों के अतिरिक्त श्रीवल्लभोपाध्याय कृत विजयदेव महात्म्य संघपति रूपजी वंशप्रशस्ति, सूरचन्द्रोपाध्याय कृत स्थूलिभद्र गुणमाला काव्य, रामविजयोपाध्याय कृत गौतमीय महाकाव्य, और शिवचन्द्रोपाध्याय कृत प्रद्युम्नलीलाप्रकाश गद्य काव्य प्राप्त हैं।
पादपूर्ति काव्यों में विक्रम कवि कृत नेमिदूतम् (मेघदूत पादपूर्ति), विमलकीर्ति कृत चन्द्रदूतम् (मेघदूत पादपूर्ति), समयसुन्दरोपाध्याय कृत जिनसिंहसूरि पदोत्सव काव्य (रघुवंश पादपूर्ति), और समयसुन्दरोपाध्याय, एवं धर्मवर्द्धनोपाध्याय आदि रचित भक्तामर पादपूर्ति स्तोत्र भी प्राप्त हैं।
न्यायदर्शनशास्त्र में जिनेश्वरसूरि का प्रमालक्ष्म, देवभद्रसूरि का प्रमाणप्रकाश, अभयतिलक का न्यायालङ्कार टिप्पण, पानीय वादस्थल आदि। टीका ग्रन्थों में गंगेश कृत तत्त्वचिन्तामणि पर गुणरत्नगणि की सुखबोधिका टिप्पण प्राप्त है। इनके अतिरिक्त सोमतिलकसूरि की षड्दर्शन समुच्चय टीका, चारित्रनन्दी का स्यादवाद पुष्पकलिका प्रकाश, सुमतिसागरोपाध्याय का तत्त्वचिन्तामणि टिप्पणक, गुणरत्नोपाध्याय की तर्क भाषा टीका, क्षमाकल्याणोपाध्याय एवं कर्मचन्द की तर्कसंग्रह टीकाएं, भक्ति लाभोपाध्याय का न्यायसार चूर्णि, दयारत्न की न्याय रत्नावली, जिनवर्द्धनसूरि और भावप्रमोद की सप्त पदार्थी टीकाएं प्राप्त है।
स्वतन्त्र व्याकरण शास्त्र में बुद्धिसागर व्याकरण, सहजकीर्ति कृत शब्दार्णव व्याकरण, ऋजुप्राज्ञ व्याकरण, सहजसुन्दर की शब्दार्णव प्रक्रिया, साधुसुन्दर का धातुरत्नाकर, उक्तिरत्नाकर आदि । व्याख्या ग्रन्थों में मन्त्रि मण्डन कृत सारश्वत मण्डन एवं उपसर्ग मण्डन, सहजकीर्ति कृत सारश्वत व्याकरण टीका, सदानन्द कृत सिद्धान्त चन्द्रिका टीका आदि। कातन्त्र विभ्रम सूत्र पर जिनप्रभसूरि और चारित्रसिंह की टीकाएं प्राप्त हैं। हैमलिङ्गानुशासन पर श्रीवल्लभोपाध्याय की दुर्गपदप्रबोध टीका प्राप्त है। मतिकीर्ति की गुणकित्व षौडशिका, विमलकीर्ति की पदव्यवस्था, विशालकीर्ति की प्रक्रिया कौमुदी टीका आदि कृतियाँ भी प्राप्त हैं।
पूर्ववर्ती महाकवियों के महाकाव्यों पर खरतरगच्छीय आचार्यों ने अपनी लेखिनी चलाकर इसको समृद्ध करने में कोई कमी नहीं रखी है। रघुवंश काव्य पर क्षेमहंस, गुणरत्नोपाध्याय, गुणविनयोपाध्याय, चारित्रवर्द्धन, जिनसमुद्रसूरि, धर्ममेरुगणि, पुण्यहर्षगणि, समयसुन्दरोपाध्याय, सुमतिविजयगणि, जयसागरोपाध्याय आदि । कुमार सम्भव पर क्षेमहंस, चारित्रवर्द्धन, जिनभद्रसूरि, जिनसमुद्रसूरि, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय, समयसुन्दरोपाध्याय आदि की टीकाएँ। मेघदूत काव्य पर
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