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पिछले एक हजार वर्ष में खरतरगच्छ में साहित्य का सृजन तो अपरिमित हुआ है, पर खरतरगच्छ के वर्तमान अनुयायियों के पास उसका दस प्रतिशत भाग भी उपलब्ध नहीं है। प्रश्न है ऐसी स्थिति में खरतरगच्छ आने वाली पीढ़ी को ज्ञान की कौनसी विरासत देना चाहता है यह बात हर किसी व्यक्ति के लिए विचारणीय है। हमारे अथवा किसी व्यक्ति-विशेष की बदौलत धर्म संघ को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। सकारात्मक दृष्टिकोण और रचनात्मक गतिविधियों को हाथ में लेकर सभी लोग इसके लिए समर्पित होंगे, तभी हम आने वाले कल के लिए यादगार अतीत दे पाएँगे।
खरतरगच्छ के विशाल साहित्य को प्रकाशित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है, एक बहुत बड़ी साधना है। यदि कोई श्री विनयसागरजी से पूछे कि उन्हें खरतरगच्छ के इस विशाल साहित्य कोश को तैयार करने में कितना अधिक कर्मयोग करना पड़ा तो उनके जवाब से ही स्पष्ट हो जाएगा कि खरतरगच्छ के साहित्य के लिए शोधपरक काम करना कितना श्रमसाध्य है। दस नये ग्रन्थों के लेखन से भी ज्यादा श्रमसाध्य कार्य इस तरह के कोश को तैयार करना है। हम विद्वद्वर्य श्री विनयसागरजी से यह अनुरोध करना चाहेंगे कि वे अपने शेष जीवन-काल में खरतरगच्छ के लिए जितना कुछ कर सकते हैं, अवश्य करें। वे अपने सहयोगियों का चयन करें और आने वाले कल के लिए खरतरगच्छ को कुछ और देकर जाएं। निश्चय ही खरतरगच्छ आप जैसे विद्वान-मनीषियों का ऋणी रहेगा।
महोपाध्याय विनयसागर जी ने बचपन से ही अपना जीवन जैन-धर्म के शास्त्र, दर्शन, इतिहास एवं परम्परागत अध्ययन में लगाया है। वे इतिहासवेत्ता भी हैं, साथ ही संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। उनके द्वारा लिखित-सम्पादित कई ग्रन्थ एवं शास्त्र आज देशविदेश में शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी हो रहे हैं।
महोपाध्याय विनयसागरजी द्वारा सम्पादित प्रस्तुत कोश खरतरगच्छ साहित्य कोश शोधकर्ताओं के लिए वरदान स्वरूप है। खरतरगच्छ के अनुयायियों और साधु-साध्वीजनों का भी यह दायित्व बनता है कि इस कोश का उपयोग करते हुए वे अधिकाधिक अध्ययन और अनुशीलन करें और अपने गच्छ के प्राचीन साहित्य को ज्ञान भंडारों से निकालकर आम जन-मानस के लिए उपयोगी बनाएँ।
___ इस श्रेष्ठ कार्य के लिए हम श्री विनयसागरजी को साभिनंदन साधुवाद समर्पित करते हैं।
महोपाध्याय ललितप्रभसागर
संबोधि धाम जोधपुर-४
IV
भूमिका
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