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जैन धर्म मानवतावादी धर्म है। इसने सदा वही प्रयास किये हैं जिनसे मानव-जाति को विश्व-शांति, विश्व-बन्धुत्व और विश्व-विकास का सौभाग्य प्राप्त हो सके। जैन धर्म ने निवृत्ति प्रधान होने के बावजूद न केवल मानवजाति अपितु प्राणी मात्र के कल्याण की सद्भावना व्यक्त ही है। अहिंसा का सिद्धान्त देकर प्रेम और भाईचारे को अपनाने पर जोर दिया है। अनेकान्त की मिसाल देकर अनेकता के बीच भी एकता और समन्वय का भाव निर्मित किया है। अपरिग्रहव्रत की अवधारणा देकर पारस्परिक सहयोग का वातावरण बनाने का प्रयास किया है।
जैन धर्म के तीर्थंकरों और सिद्ध पुरुषों ने भले ही आत्म-साधना के लिए वनवास और एकान्तवास का चयन किया हो, किन्तु परम ज्ञान को प्राप्त करने के बाद वे मानव जाति के कल्याण की ओर ही अभिमुख हुए। किसी भी विरक्त और वीतराग-पुरुष के द्वारा लोक कल्याण के लिए प्रेरित और प्रयत्नशील होना मानव जाति पर उनका बहुत बड़ा उपकार है। उनकी लोक कल्याणकारी मंगल वाणी को उनके शिष्यों और आचार्यों ने लिपिबद्ध किया। उनकी वही वाणी आगम तथा शास्त्र के रूप में मानव जाति को जीवन का आध्यात्मिक प्रकाश प्रदान कर रही है।
तीर्थंकरों, बुद्धों और अवतार-पुरुषों की वाणी का तो धर्मशास्त्र के रूप में श्रद्धालुओं द्वारा पारायण किया ही जाता है, किन्तु उनके महान शिष्यों और अन्य महापुरुषों के द्वारा भी जो कुछ कहा
और लिखा गया, मानव जाति ने उनसे भी सद्ज्ञान का प्रकाश प्राप्त किया है। उनके द्वारा किया गया सृजन सहज सामान्य भाषा में साहित्य कहलाता है।
साहित्य समाज का दर्पण है, समाज और मानव जाति को विकास का रास्ता दिखाने वाला मील का पत्थर है, वह मार्गदर्शक और प्रकाश किरण की तरह है। साहित्य का मानव-जाति को उतना ही अवदान है जितना कि लोक कल्याण करने वाले किसी महापुरुष का हुआ करता है। हर रचना में उसका रचनाकार और हर साहित्य में उसका साहित्यकार समाया होता है। इसलिए यदि हमारे हाथों में एक श्रेष्ठ किताब है तो आप मानकर चलें कि वह एक पुस्तक नहीं वरन् हमारा एक गुरु और हमारा कल्याण-मित्र भी है।
जैन धर्म ने संतों और साहित्य के द्वारा मानव जाति की बहुत बड़ी सेवा की है। जीवन का शायद ही ऐसा कोई विषय हो जिस पर इस धर्म के संतों, आचार्यों और विद्वानों ने अपनी ओर से मानवता का मार्गदर्शन न दिया हो। धर्म, अध्यात्म, साधना जैसे विषयों पर तो इस धर्म की पकड़ अतुलनीय है, किन्तु जीवन के सामान्य व्यवहारों, ज्ञान-विज्ञान और लोकालोक की अंतहीन गहराइयों पर भी इस धर्म के महामनीषियों की गहरी पकड़ रही है।
भूमिका
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