Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 7
________________ इस पुरानी बात को चित्र द्वारा प्रकाशित करवाने की इस समय अवश्यकता नहीं थी पर हमारे खरतर भाइयों ने इस प्रकार की प्रेरणा की कि जिससे लाचार होकर इस कार्य में प्रवृति करनी पड़ी है जिसके जिम्मेदार हमारे खरतर भाई ही हैं। ____ इस कलंक को छिपाने के लिए आधुनिक खरतरों ने जिनेश्वरसूरि का पाटण की राजसभा में शास्त्रार्थ होने का कल्पित ढाँचा तैयार कर स्वकीय ग्रंथों में प्रन्थित कर दिया है। परन्तु प्राचीन प्रमाणों से यह साबित होता है कि न तो जिनेश्वरसूरि कभी राजसभा में गये थे न किसी चैत्यवासी के साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ था और न राजा दुर्लभ ने खरतर विरुद ही दिया था। इस विषय के लिये खरतर मतोत्पत्ति भाग १-२-३-४ आपके करकमलों में विद्यमान है जिसको पढ़ कर आप अच्छी तरह से निर्णय कर सकते हैं। ... कहा जाता है कि 'हारा ज्वारी दूणो खेले' इस युक्ति को चरितार्थ करते हुए खरतरों ने जिनेश्वरसूरि का कल्पित चित्र बना कर उसके नीचे लेख लिख दिया है कि 'उपकेशगच्छीय चैत्यवासियों को परास्त किया' भला कभी जिनेश्वरसूरि श्रा कर खरतरों को पूंछे कि अरे भक्तो ! मैं कब पाटण की राजसभा में गया था और कब उपकेशगच्छीय चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ किया था और कब राजा दुर्लभ ने मुझे खरतर विरुद् दिया था, तुमने यह मेरे पर झूठा आक्षेप क्यों लगाया है? उपकेशगच्छ के प्राचार्यों को तो मैं पूज्य भाव से मानता हूँ क्योंकि उन्होंने लाखों करोड़ों प्राचार पतित क्षत्रियों को जैनधर्म में दीक्षित कर 'महाजन-सघ' की स्थापना की थी। उन्हीं श्रोस्वाल, पोरवाल और श्रीमालों ने

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