Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 11
________________ यह कातन्त्ररूपमाला व्याकरण इतनी सरल है कि एक इसी के अध्ययन के आधार पर मैंने अष्टसहस्री जैसे क्लिष्टतम ग्रंथ का भाषा अनुवाद किया है। नियमसार प्राभृत ग्रन्थ की स्याद्वादचन्द्रिका नाम से संस्कृत टीका रची है और 'आराधना' नाम से एक संस्कृत ग्रन्थ लिखा है। अनेकों संस्कृत स्तुतियाँ बनाई हैं। इस व्याकरण को पढ़ते समय मस्तिष्क में जोर नहीं पड़ता है न लोहे के चने ही प्रतीत होती है। मेरी यही कामना है कि आप लोग इस व्याकरण को पढ़कर-पढ़ाकर संस्कृत के कुशल विद्वान् बनें और बालक-बालिकाओं को भी इसे पढ़ावें निष्णात बनावें। पुन: संस्कृत के उच्चकोटि के ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन करने में कुशल होंवे और सम्यग्ज्ञानमयी विद्या को प्राप्त कर श्रुतज्ञानरूपी दीपक से आत्मतत्त्व को देखकर उसका अनुभव करके परम्परा से केवलज्ञान के भागी बनें। गणिनी आर्यिका ज्ञानमती (8)

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