Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

Previous | Next

Page 32
________________ “नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवन्ताणं" इस पाठ की रचना में शब्दों का जो क्रम दिया हैं, वह इस तर्क-युक्ति का प्रमाण सिद्ध करता है । अतः जो-जो अरिहंत होते हैं वे भगवान अवश्य कहलाते हैं। यही इस परीक्षा (या कसोटी) पर खरा उतरता है । इस दृष्टिकोण से सोचने पर भी "सब भगवान एक है" यह बात रत्तीभर भी सही नहीं लगती है। एक सज्जन ने प्रश्न किया कि-भक्तामरस्तोत्र आदि कई स्तुतियों में कई भगवानों के नाम एक साथ लेकर नमस्कार किया गया है तो उसमें क्या समझना चाहिए ? उदाहरण के लिए (१) नवबीजांकुर जनता रागाइयो क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुवा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ . बुद्धस्त्वमेव विबुधाचित-बुद्धि-बोधात्, त्वं शंकरोऽसि अवनत्रय-शंकरत्वात् । धातासि धीर ! शिवमार्गविधै-विधानात्, व्यक्त स्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ . इन स्तुतियों में ब्रह्मा, विष्णु, हर-महादेव, तथा जिन भगवान आदि सभी को एक साथ नमस्कार किया गया है। वैसे ही भक्तामरस्तोत्र की इस स्तुति में भी बुद्ध, शंकर, धाता-विधाता, पुरुषोत्तम आदि भगवान के नामों का एक साथ उल्लेख करके नमस्कार किया गया है। _ “सब भगवान एक है" ऐसा वे मानते या स्वीकारते होंगे। तभी तो उन्होंने ऐसी स्तुतियां की होगी ? .. ___ महाशयजी ! आपका कहना ठीक है। परन्तु इसका रहस्य समझने पर सम्भव है कि आपकी भ्रांति दूर हो जाय। आपने उपरोक्त स्तुति में सिर्फ भगवान के प्रचलित नामों पर ही ध्यान दिया है, परन्तु समूचे अर्थ पर ध्यान नहीं दिया, ऐसा लगता है । देखिए-सभी को नमस्कार जरूर किया गया है, परन्तु वह नमस्कार सशर्त किया गया है । “भवबीजांकुर जनना रागदयो क्षयमुपागतायस्य ।" अर्थात् भव-संसार के बीज रूप राग-द्वेष आदि का जिसने सर्वथा क्षय कर दिया है ऐसे नामधारी चाहे जो भी कोई हो, भले ही वे ब्रह्मा हो, विष्णु हो, हर हर महादेव हो, या जिनेश्वर कर्म की गति न्यारी

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132