Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 53
________________ निने सम्भव ही नहीं हैं । ठीक वैसे ही जीवत्व की दृष्टि से सभी जीव समान होते हुए मी मोक्ष प्राप्ति की अयोग्यता और योग्यता के कारण जीवों के दो भेद होते हैं । गाय-भैंस के दूध की तरह भव्य जीव में मोक्षप्राप्ति की योग्यता पड़ी है, जबकि शाकड़े के वृक्ष की तरह अभवी जीव में मोक्ष प्राप्ति रूप योग्यता की सम्भावना ही नहीं है। - भव्य जीव में भी जाति भव्य या दुर्भव्य प्रकार के जीव भी होते हैं। इस तरह भव्य, अभव्य और दुर्भव्य भेद से मूलत: जीव तीन प्रकार के होते हैं । जाति भव्य जीव यद्यपि भव्य की जाति का ही है, उसमें मोक्ष प्राप्ति की योग्यता पड़ी है, परन्तु उसे मोक्ष प्राप्ति की साधन-सामग्री कभी उपलब्ध ही नहीं होती है । अतः पोक्ष प्राप्ति की योग्यता होते हुए भी वह कभी भी मोक्ष,में न जा सके उसे दुभंव्य पा जाति भव्य कहते हैं । इन भेदों को समझाने के लिए स्त्री का उदाहरण उपयोगी सिद्ध होगा । जैसे तीन प्रकार की स्त्रियां होती है । १. जिसमें पुत्र को न्म देने की योग्यता होती है । २. जिममें पुत्र को जन्म देने की योग्यता ही नहीं हैं । अर्थात् से वंध्या है । ३. जिसमें पुत्र को जन्म देने की योग्यता होते हुए भी जो सन्यास-दीक्षा मेकर साध्वी बन चुकी है। १. पहली स्त्री के समान भवी जीव कहलाता है। जैसे प्रथम प्रकार की स्त्री में अवंध्यत्व अर्थात् पुत्र को जन्म देने की योग्यता होती है। शादी होने पर पति संयोग आदि की सामग्री मिलने पर वह भविष्य में पुत्र को न्म दे सकती है । ठीक वैसे है भव्य जीव में मोक्ष प्राप्त करने को योग्यता है। मोक्ष प्राप्त योन्य सर्व साधन-सामग्रियां उपलब्ध होने पर जो मोक्ष प्राप्ति कर सकता है उसे भव्य जीव कहते हैं। . २. वंध्या स्त्री जिसमें पुत्र को जन्म देने की योग्यता मूलतः ही नहीं है, उसे भले ही शादी, पति संयोग आदि सामग्री उपलब्ध होने पर भी वह कदापि पुत्र को जन्म नहीं दे सकती है। ठीक वैसा ही अभवी जीव होता है, जिसमें मोक्ष प्राप्ति की योग्यता मूलतः ही नहीं है। अतः भले ही मोक्ष प्राप्ति योग्य साधन सामग्री जितनी भी प्राप्त हो, परन्तु वह कदापि मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है । अर्थात् अभवी के लिए मोक्ष प्राप्ति असंभव हो है। शाम को गति न्यारी

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