Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 86
________________ सम्यक्त्व प्राप्ति के दो प्रकार"तन्निसर्गादधिगमाद् वा" निसर्गाद्वाऽधिगमतो, जायते तच्च पंचधा । मिथ्यात्वपरिहाण्यव, पंचलक्षणलक्षितम् ॥ [धर्मसंग्रह-२२] सम्यक्त्व प्राप्ति निसर्ग से अधिगम से निसर्ग = अर्थात् बिना किसी निमित्त के, स्वाभाविक, सहज रूप से । निसर्ग से-तीर्थकर भगवान, गुरु उपदेश आदि किसी भी प्रकार का निमित्त न प्राप्त होते हुए भी जो जीव स्वयं सहज, स्वाभाविक भाव से तथा भव्यत्वादि प्राप्त करके यथाप्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण आदि करण करता हुआ, अंतरंग विशुद्धि एवं अध्यवसाय शुद्धि के आधार पर जो जीव नैसर्गिक अर्थात् स्वाभाविक प्रक्रिया से सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं, उसे निसर्ग सम्यक्त्व कहते हैं । सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति अंतरंग और बाह्य दो निमित्तों से होती है । अतः निसर्ग यह अंतरंग निमित्त है, और अधिगम यह बाह्य निमित्त नन्य है। निसर्ग और अधिगम ये दोनों सम्यक्त्व के प्रकार नहीं है, लेकिन सम्यक्त्व प्राप्ति की प्रक्रिया के मात्र दो मार्ग हैं। जीव विशेष की योग्यता विशेष, परिपकत्व होने पर, किसी देव-गुरु आदि के उपदेश के अभाव में भी, वह नैसर्गिक रूप से अंतरंग विशुद्धि के आधार पर, तोनों करण करके जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है, उसे निसगं सम्यक्त्व कहते हैं। (२) अधिगम सम्यक्त्व-अधिगम अर्थात् तीर्थकर, गुरु आदि के उपदेश रूर बाह्य निमित्त । इसमें देव-गुरु के उपदेश, धर्मोपदेश, जिन प्रतिमा दर्शन-पूजन, जिनागम प्रवचन श्रवण, आदि बाह्य निमित्तों की प्रधानता रहती है। इन प्रेरक निमित्तों से जिसे सम्यक्त्व प्राप्त होता हो, उसे अधिगम सम्यक्त्व कहते हैं । ऐसा सम्यक्त्व चाई ८४ कर्म की गति न्यार

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