Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 103
________________ सम्यक्त्व के विविध प्रकार एगविह दुविह तिविहं. चउहा पंचविह दसविहं सम्म । दव्वाइ कारयाई, उवसमभेएहि वा सम्म । एगावह सम्मरूई, निसग्गहिगमेहि भवे तयं दुविहं । तिविहं तं खइआई, अहवावि हु कारगाईअं ॥ खइगाई सासणजुअं, चउहा वेअग जुधे तु पंचविहं । तं मिच्छचरमपुग्गल-वेअणओ दस विहं एअं॥ प्रवचन सारोद्धार ग्रन्थ में सम्यक्त्व को विविध प्रकारों से समझाने के लिए संख्या के आधार पर कई प्रकार बनाकर बताए हैं, जिसमें एक प्रकार से, दो प्रकार से, तीन भेद से, चार भेद मे, पांच भेद से और दस,भेद से, इस तरह विविध प्रकारों से सम्यक्त्व का स्वरूप समझाया गया है। अतः इनका क्रमशः विचार करना लाभदायक होगा। (१) एक प्रकार से सम्यक्त्व-"फर्गावह सम्मरुई' सम्यक्त्व रूचि को एक प्रकार का सम्यक्त्व कहते हैं या "तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं" तत्वार्थ में श्रद्धा रखना। (२) दो प्रकार से सम्यक्त्व भिन्न-भिन्न तरीकों से अलग-अलग रूप से होता है। दो प्रकार के सम्यक्त्व . (अ) निसर्ग सम्यक्त्व अधिगम सम्यक्त्व दो प्रकार के सम्यक्त्व I निश्चय सम्यक्त्व व्यवहार सम्यक्त्व (स) दो प्रकार से सम्यक्त्व द्रव्य सम्यक्त्व भाव सम्यक्त्व कर्म की गति न्यारी १०१

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