Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 112
________________ (६) अधिगम रुचिअधिगम अर्थात् ज्ञान । सर्व आगमों के आभास से अर्थ ज्ञान जो प्राप्त किया हो और उस ज्ञान से सर्व आगम शास्त्रों के अर्थ पर सर्वथा सही है ऐसी श्रद्धा उत्पन्न हो उसे अधिगम सम्यक्त्व कहते हैं। (७) विस्तार रुचि प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान, शब्द प्रत्याभिज्ञान एवं आगम आदि सर्व प्रमाण, नय और निक्षेप आदि पूर्वक जो सर्व द्रव्यों का और सर्व गुण पदार्थों का ज्ञान होता है और उससे उत्पन्न हुई अत्यन्त विशुद्ध श्रद्धा को विस्तार रुचि सम्यक्त्व कहते हैं । . (८) क्रिया रुचिज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार आदि पंच आचार का पालन करने की रुचि एवं विनय, वैयावच्च आदि अनुष्ठान रूप क्रिया करने की रुचि को क्रिया रूप सम्यक्त्व कहते हैं । (६) संक्षप रुचिजिसे पर दर्शन का ज्ञान नहीं है और जिन वचन रूप स्वदर्शन से भी अच्छी तरह परिचय नहीं है, अर्थात् जिसने किसी तत्ब का सही ज्ञान प्राप्त नहीं किया है, ऐसे जीव को मात्र मोक्ष प्राप्ति की रुचि हो उसे संक्षेप रुचि सम्यक्त्व कहते हैं । जैसा "चिलाती पुत्र" के जीवन में हुआ। जिसे सम्यग् धर्म का एवं तत्वादि का कुछ भी ज्ञान नहीं था, फिर भी उपशम-संवर विवेक झप पदत्रय के श्रवण मात्र से ही जो · मोक्ष रुचि जागृत हुई उसे संक्षेप रुचि कहते हैं। (१०) धर्म रूचिमात्र "धर्म" शब्द सुनने से ही जिसे धर्म के प्रति आदर, सन्मान, प्रेम या प्रीति उत्पन्न हो और धर्म पर से वाच्य ऐसे यथार्थ धर्म तत्व के प्रति जो सही कक्षा या रुचि उत्पन्न हो, उसे धर्म रुचि सम्यक्त्व कहते हैं। इस प्रकार सम्यक्त्व द्योतक दस प्रकार की भिन्न-भिन्न रुचियाँ हैं, जो सम्यग् श्रद्धा कारक है । संक्षेप में साधक की सम्यग श्रद्धा का विश्लेषण करने पर प्रमुख ११० कर्म की गति न्यारी

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