Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 110
________________ जीवसमासवृत्ति में मलधारी हेमचन्द्रसूरि म. ने लिखा हैं कि "वेद्यते - -अनुभूयते शुद्ध सम्यक्त्व पुंज पुद्गल अस्मिन्नीति, वेदकं ।” अर्थात् शुद्ध सम्यक्त्व के पुद्गल पुंज जिसमें वेदन अनुभव होता है, उसे वेदक सम्यक्त्व कहते हैं । १०८ - उपरोक्त पाँच प्रकार के सम्यक्त्वों का संक्षेप में विवेचन किया गया है । विशेष रुचि वाले महानुभावों को अन्य शास्त्र आदि ग्रन्थों से जान लेना चाहिये । दशविधि सम्यक्त्व "रुचि: जिनोक्ततत्वेषु, सम्यग् श्रद्धानमुच्यते ।” योगशास्त्र में हेमचन्द्राचार्य म. कहते हैं कि, जिनेश्वर भगवान द्वारा कहे हुए तत्वों में रुचि निर्माण होना, इसे सम्यक्त्व या सम्यग् ( सच्ची ) श्रद्धा कहते हैं । " तत्व रुचि " को सम्यग्दर्शन का कारणभूत प्रबल निमित्त बताया गया है । सिद्ध चक्र महापूजन के मेंअनुष्ठान " तत्व रुचि रूपाय श्री सम्यग् | दर्शनाय स्वाहा ।" - “तत्वरुचि” रूप सम्यग्दर्शन को मंगल रूप मानकर पूजन करते हुए नमस्कार किया गया है । अतः सारांश यह है कि सम्यक्त्व प्राप्ति के लिए " तत्व रुचि " जागृत करना परम आवश्यक है । शास्त्रकार महापुरुषों ने सम्यक्त्व कारक ऐसी १० प्रकार की भिन्न-भिन्न रुचियां दशविध सम्यक्त्व के अन्तर्गत बताई हैं । वे इस प्रकार हैं निसग्गुवए स रूई, आणरूइ सुत्त-बीअ रूइमेव । अभिगम - वित्थाररूई, किरिआ संखेवघम्मरूई ॥ ( १ ) निसर्ग रुचि - - निसर्ग अर्थात नैसर्गिक, याने स्वाभाविक भाव से जिनेश्वर - सर्वज्ञ भगवान द्वारा प्ररूपित जीवादि तत्वों के प्रति स्वाभाविक अभिलाषा या रुचि होना । बिना किसी के उपदेश से जाति- स्मरणज्ञान से या अपनी प्रतिभाशाली मति से जीवादि तत्वों के प्रति रुचि जागृत होना, या दर्शनमोहनीय कर्म के क्षयोपशम होने से मात्र कर्म की गति न्यारी

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