________________
इच्छा पूर्ति का निमित्त एवं आधारभूत कारण मान लेता है । इसी तरह वह शंख, कई प्रकार की विधियों में आशा रखकर अंधश्रद्धा से भाँगता
श्रीफल आदि रहता है ।
जिन देव-गुरु-धर्म का उपयोग संसार निवृत्ति, भव-मुक्ति एवं आत्म कल्याण तथा कर्म-क्षय (निर्जरा) रूप, आत्म शुद्धि के लिये था, उनका उपयोग अंधश्रद्धालु व्यक्ति ने सांसारिक दुःख निवृत्ति तथा भौतिक पौद्गलिक, वैषयिक सुख प्राप्ति के लिए किया। यहां जाने से सुखी बनूंगा, इनसे मेरी इच्छा पूर्ति होगी, उनसे आशा फलीभूत होगी, ऐसी अंधश्रद्धा की विचारधारा में वह, यहाँ-वहाँ भागता फिरता है । जो भी देव हो, वह उनके सैकड़ों मन्त्रों का जाप करता रहता है । वह यहाँ-वहाँ किसी भी देव के पास जाता रहता है ।
इस प्रकार की सम्यग् तत्व-ज्ञान रहित अंध श्रद्धा का पतन एवं परिवर्तन जल्दी हो सकता है, उसे कोई भी जल्दी से बदल सकता है, क्योंकि ज्ञानजन्य श्रद्धा न होने के कारण वह कभी भी अपनी श्रद्धा से च्युत हो सकता है । इसलिए सही एवं सच्ची श्रद्धा को महापुरुषों ने सम्यग् - तत्वज्ञान जन्य बताई है | आत्मापरमात्मा, मोक्षादि तत्वों के यथार्थ, वास्तविक ज्ञान जन्य सम्यग् दर्शन रूप सच्ची श्रद्धा को ही सम्यग् श्रद्धा कहते हैं । यही सम्यग् श्रद्धा देव-गुरु-धर्म की श्रद्धा, उनकी आराधना या उपासना सम्यग् कराती है । आचरण भी सही होता है । उनकी उपासना कर्मक्षय रूप निर्जरा - प्रधान एवं आत्म-कल्याणकारी होती है । ऐसे सम्यग् दर्शन से ही भव मुक्ति, संसार मुक्ति-आत्मा शुद्धि एवं मोक्ष सिद्धि मिलती है ।
सम्यग् दर्शन की अनिवार्यता पर कह दिया है कि
बंसण भट्ठो भट्ठो, दंसण चरण रहिया सिज्झइ, दंसण
सम्यग् दर्शन से tata fea नहीं होता है, सम्यग् दर्शन रहित जीव को
कर्म की गति न्यारी
जोर देते हुए श्री वीर प्रभु ने यहां तक
रहिया न सिज्झई । रहिया न सिज्झई ॥
- उत्तराध्ययन सूत्र
भ्रष्ट, भ्रष्ट ही गिना जाता है, ऐसा सम्यग् दर्शन रहित चारित्र से रहित जीव कदाचित मुक्त हो भी जाय, परन्तु कभी भी मोक्ष नहीं मिलता है । अतः मोक्ष प्राप्ति के
१२१