Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 130
________________ (महिमाशाली-लाभदायक) ऐसा आपका सम्यग् दर्शन-सम्यक्त्व रूपी रत्न पाकर अनेक जीव निविघ्न-विघ्नरहित, जन्म-मरण रहित अजरामर ऐसे मोक्ष पद को यथाशीघ्र ही प्राप्त करते हैं। यही प्रार्थना मैं मेरे लिए करता हूँ कि मैं भी ऐसा आपका विशुद्ध सम्यग् दर्शन प्राप्त करके मोक्ष पद को प्राप्त करूं । इसी तरह अनेक भव्यात्माएँ भी आपको परम श्रद्धा रूप सम्यग् दर्शन-सम्यक्त्व रत्न को प्राप्त करके भविष्य में मोक्ष पद को प्राप्त करें । ऐसे सभी जीवों के प्रति शुभ मनोकामना एवं प्रार्थना प्रभु चरण में शुद्ध भाव से प्रकट करता हूँ। सभी विशुद्ध श्रद्धालु बनें। सभी का कल्याण हो । इसी शुभेच्छा के साथ........"समाप्तम् । "सर्वेऽपि सन्तु श्रद्धावन्तः ।" . ॥ इति शं भवतु सर्वेषाम् ॥ १२८ कर्म की गति स्यारी

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