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(१) एक प्रकार का पुत्र वह होता है जो अपने पिता को कहता है कि पिताजी ! मैं आपको मानूंगा। परन्तु आपका कहना नहीं मानूंगा।
(२) दूसरा कहता है पिताजी ! आपका कहना मानूंगा पर आपको नहीं मानूंगा।
(३) तीसरा कहता है पिताजी ! मैं न तो आपको मानूंगा और न ही आपका कहना मानूंगा।
(४) चौथा कहता है पिताजी ! मैं आपको भी मानूंगा और आपका कहना भी मानूंगा।
पाठकों ! आप ही सोचिए कि उपरोक्त चार प्रकार के पुत्रों में से कौनसा पुज्ञ अच्छा और योग्य है ? प्रथम या द्वितीय दोनों प्रकार के पुत्र जो कि एकान्तीएकपक्षीय मान्यता रखते हैं, उन्हें कैसे अच्छे मान सकते हैं ? जो पिता को न माने
और उनकी आज्ञा को मानें, या आज्ञा को माने और पिता को न माने, वे दोनों ही अधूरी श्रद्धा वाले हैं । तीसरा पुत्र जो पिता और आज्ञा दोनों को ही मानने के लिए तैयार नहीं है, ऐसे तीनों प्रकार के पुत्र अयोग्य कहलाते हैं । पिता और आज्ञा दोनों को मानने वाला चौथा पुत्र ही योग्य कहलायेगा । यह तो व्यावहारिक क्षेत्र में पुत्र की बात हुई लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र में भक्त और भगवान के विषय में पुत्र की ही तरह चार भेद होते है
(१) एक प्रकार का भक्त वह होता है जो भगवान को मानता है परन्तु भगवान की आज्ञा नहीं मानता है।
(२) दूसरा जो कि पहले का ठीक उल्टा है वह भगवान की आज्ञा को तो मानता है लेकिन भगवान को मानने के लिए तैयार नहीं है।
(३) तीसरा वह है जो महामिथ्यात्वी एवं नास्तिक है, वह भगवान और भगवान की आज्ञा रूप धर्म दोनों को ही मानने के लिए तैयार नहीं है।
(४) चौथा परम् श्रद्धालु एवं आस्तिक है जो भगवान को और भगवान की आज्ञा या धर्म दोनों को समश्रद्धा से मानता है ।
__ इस प्रकार चार पुत्रों की तरह चार प्रकार के भक्त होते हैं। उनमें मात्र चौथे प्रकार का पुत्र या भक्त ही योग्यता वाला होता है, जो श्रद्धावान एवं आस्तिक होता है । अन्य तीनों प्रकार के पुत्र एवं भक्त अयोग्य-नास्तिक एवं अनाज्ञाकारी होते हैं । जिस तरह एक पिता उपरोक्त तीनों प्रकार के पुत्रों को पुत्र होते हुए भी
कर्म की गति न्यारी
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