Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 115
________________ 1 नहीं तो यथेच्छ लाभ नहीं भी होता है। तर्क बुद्धि से देखने पर ऐसा प्रश्न खड़ा होता है कि जो जानता है वह मानता ? या जो मानता है वह जानता है । जो जितना और जैसा जानता है, क्या वह उतना ही और वैसा ही मानता है ? इसके उत्तर में कहते हैं कि ऐसा अनिवार्य नहीं है कि जो जाने वह माने ही, वैसे ही जो माने उसे जाने ही । यह भी कई बार अनिवार्य नहीं दिखाई देता है । ज्ञान संग्रह के रूप में कई लोग सैकड़ों विषयों का ज्ञान (जानकारी) जरूर रखते हैं, जैसे कि मिथ्यादृष्टि जीव भी आत्मा, परमात्मा, मोक्षादि विषयों की जानकारी रखता भी है, और आजीविका के लिए दूसरों को पढ़ाता भी है, परन्तु स्वयं इन विषयों को नहीं भी मानता है अर्थात् स्वयं आत्मा परमात्मा मोक्षादि तत्वों में श्रद्धा नहीं रखता है । अभव्य जीव भी कई बार आत्मा-परमात्मा, मोक्षादि तत्वों की जानकारी, उसका अच्छा व पर्याप्त ज्ञान भी रखता है । दीपक सम्यक्त्व के रूप में सम्यक्त्व की उपमा पाने वाला, अभव्य जीव दूसरे कई जीबों को पढ़ाकर या समझा-बुझाकर उनकी श्रद्धा उत्पन्न करा देता है लेकिन स्वयं सदा ही मिथ्यात्वी श्रद्धाहीन रहता है । इस तरह कई जीव जानते हुए भी श्रद्धा रखने रूप मान्यता नहीं रखते हैं । वे श्रद्धा विहीन ज्ञानवान होते हैं। विद्वान् पंडित कई बार अहितदर्शन के आत्मापरमात्मा, मोक्षादि तत्वों का अभ्यास करते और कराते हैं । अहिंसा आदि सिद्धान्तों पर भाषण भी देते हैं और लेख भी लिखते हैं परन्तु उसमें श्रद्धा नहीं रखते हैं । वे साफ कहते हैं कि हम मात्र आजीविका के लिए किसी को पढ़ा देते हैं, तथा पैसा मिलता हो, सम्मान मिलता हो तो भाषण भी देते हैं । लेख व पुस्तक आदि भी लिख देते हैं । परन्तु हम तो यही मानते हैं कि गाय या अश्व मारकर, उनका पुरोडास बनाकर यज्ञ करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है । यही हमारी श्रद्धा है । जैसे मन्दिर का एक पुजारी भगवान की पूजा आदि अच्छी तरह करता है, वह क्रिया-विधि आदि की अच्छी जानकारी रखता है, परन्तु मान्यता या श्रद्धा विषय में उससे पूछा जाय तो वह साफ कहता है कि मैं तो मात्र आजीविका के लिए यह सब काम करता हूं। मुझे नौकरी करना है, मुझे तो पैसों से मतलब है । इस प्रकार उसे श्रद्धा या मानने से कोई मतलब नहीं है । इस तरह कई जो जानते कर्म की गति न्यारी ११३

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