Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07 Author(s): Arunvijay Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand SabhaPage 88
________________ असीमित एवं अनन्त था, लेकिन जब जीव ने यथाप्रवृत्तिकरण आदि तीन करणों के महापुरुषार्थ से सर्वप्रथम सम्यक्त्व प्राप्त किया, तभी से मानो उसके भव संसार में सूर्योदय हुआ हो । सम्यक्त्व रूपी सूर्योदय से उसके जीवन में मानो ज्ञान का प्रकाश फैला हो। अब उसके सामने देव-गुरु-धर्म तथा जीवादि तत्व सही अर्थ में दिखाई देने लगे। जैसे छोटे बालक को पाठशाला में प्रवेश कराते और नाम लिखाते समय, माता-पिता आदि बालक के भविष्य के प्रति आशान्वित होते हैं कि हमारा बालक एक दिन पढ़ लिखकर डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, प्रोफेसर आदि बनेगा । वे ऐसे भावी सपने बालक के विद्यालय में प्रवेश के प्रथम दिवस से ही देखने लगते हैं । खेत में बीज बोते समय ही किसान उत्तम फसल और उससे प्राप्त होने वाले भावी फल की प्राप्ति का विचार करके, मन में अभूतपूर्व आनन्द का अनुभव करता है । ठीक इसी तरह सम्यक्त्व की प्राप्ति, मोक्ष प्राप्ति का बीज रूप है । जिस तरह बीज के बिना वृक्ष की कल्पना करना असंभव है, वैसे ही सम्यक्त्व के बिना मोक्ष प्राप्ति कदापि सम्भव नहीं हैं। सम्यक्त्व की प्राप्ति होना, याने भव्य जीव के संसार रूपी खेत में मोक्ष रूपी बीज का वपन (बोया जाना) है । इसे हम इस रूप में भी कह सकते हैं कि सम्यक्त्व प्राप्ति, मोक्ष प्राप्ति की पूर्व भूमिका है। प्राथमिक कक्षा में सम्यक्त्व प्राप्ति रूपी नामांकन से जीव भावी में मोक्ष प्राप्ति रूप सिद्धावस्था की उपाधि प्राप्त करता है; या इस तरह कहिए कि मोक्ष रूपी रस्सी का प्रथम सिरा (किनारा) सम्यक्त्व है, तो आगे बढ़ती हुई उसी रस्सी का अन्तिम सिरा मोक्ष का है। ___ मोक्ष रूपी किसी सीढ़ी का प्रथम सोपान सम्यक्त्व है तो अन्तिम सोपान मोक्ष है । अतः मोक्ष की मंजिल पाने वालों को सम्यक्त्व के प्रथम सोपान पर चढ़ने से ही अपनी मोक्ष-यात्रा प्रारम्भ करनी पड़ती है । अतः ज्ञानी महापुरुषों ने कहा है किसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः । [१-१] इस सूत्र में सम्यग्दर्शन. सम्यग्ज्ञान और सम्यग् चारित्र को मोक्ष मार्ग बताया है । इस मार्ग का प्रारम्भ सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति से होता है और अन्त मोक्ष प्राप्ति में है। अतः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र मिलकर मोक्ष का मार्ग बनता है। ८६ कर्म की गति न्यारीPage Navigation
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