Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 61
________________ एगा कोडी सतसट्ठी, लक्खा सत्तहत्तरी सहस्सा य । दोय सया सोलहिमा, आवालिया इग मुहूत्तम्मि ।। ३७७३ श्वासोश्वास = ६५५३६ निगोद के क्षुल्लक भव । ६५५३६ क्षुल्लकभव = १६७७७२१६ आवलिका १६७७७२१६ आवलिका = १ अतर्मुहूर्त (२ घड़ी) ३० मुहूर्त = १ दिन (अहोरात्र) १५ दिन (दिन + रात) = १ पक्ष (पखवाड़ा) २ पक्ष (कृष्ण-शुक्ल) = १ महिना (मास) २ मास = १ ऋतु ३ ऋतु = ६ मास ६ मास (३ ऋतु) = १ अयन (उत्तरायन, दक्षिणायन) २ अयन (१२ मास) = १ वर्ष '५ वर्ष = १ युग _ १० वर्ष = १ दशक १०० वर्ष = १ शतक (शताब्दि) १००० वर्ष = १ सहस्त्राब्दि १० सहस्त्राब्दि = १०००० वर्ष १०.०००.(शतसहस्त्राब्दि) = 1 लाख वर्ष ८४ लाख वर्ष = १ पूर्वांग पूर्वांग+ पूर्वांग = १ पूर्व । १ पूर्व = ७०५६०००००००००० वर्ष (७०,५६० अरब वर्ष) ऐसे ८४ लाख पूर्व का ऋषभदेव भगवान का एक आयुष्य था। ___ असंख्य वर्ष = १ पल्यापन १० कोडाकोडी पल्योम = १ सागरोपम १ करोड (कोडि) को १ करोड़ से गुणाकार करने पर जो संख्या आती हैं उसे एक कोटा-कोटि कहते हैं १००००००००००००००। एक के अंक ऊपर १४ शून्य की संख्या जिसे “शंकु" कहते हैं, वह कोटा-कोटि कहलाती हैं। कर्म की गति न्यारी

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