Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07 Author(s): Arunvijay Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand SabhaPage 65
________________ अनन्त-अनन्त वर्षों के काल की संज्ञा का द्योतक है। योगाबिन्दु ग्रन्थ में हरिभद्रसूरिजी ने इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है कि चरमे पर्यन्ततिनि पुद्गलावर्ते द्रव्यतः सामान्येन सर्वपुद्गलग्रहणोज्शनरूपे प्रवृते सति । द्रव्य से सामान्य रूप से सर्व पुद्गलों का ग्रहण और त्याग (उज्झन) किया जाय, उसमें जितना काल बीते, उसे पुद्गल परावर्तकाल कहते हैं । चौदह राजलोक परिमित समस्त संसार में अनन्त पुद्गल परमाणु हैं, जिनकी मुख्य रूप से सात महावर्गणाए हैं। અષ્ટ મહાવર્ગણા tels are relas dse seen adlsusa caran cla આત્મા १. औदारिक वर्गणा, २. वैक्रिय वर्गणा, ३ तेजस वर्गणा, ४. कार्मण वर्गणा, ६. श्वासोश्वास वर्गणा और ७. मनोवर्गणा । इसमें (८) अहारक वर्गणा साथ में गिनने पर अष्ट महावर्गणा कहलाएगी। इन सब वर्गणाओं के अनन्तपुद्गल परमाणु जो लोक में भरे हुए हैं, उन्हें जीव ग्रहण करके परिणमन करता हुआ पुनः छोड़ दें, कर्म की गति न्यारीPage Navigation
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