Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 62
________________ ऐसे १० कोटा-कोटि पल्योम - १ सागरोपम १० कोटा-कोटि सागरोपम = १ उत्सर्पिणी १० कोटा-कोटि सागरोपम = १ अवसर्पिणी १ उत्सर्पिणी+१ अवसर्पिणी = १ कालचक्र १ कालचक्र = २० कोटा-कोटि सागरोपम अनन्त कालचक्र = १ पुद्गलपरावर्तकाल अनन्त पुद्गलपरावर्तकाल = जीव का संसार परिभ्रमण क कालचक्र कालचक्र पहला सुषमसुषमा आरा ४को.को. सागरोपम. युगलिक जीवन AP RX 92244 दूसरा सुषम आरा ३को. को.सागरोपम. युगलिक जीवन i. - - .पतीसरा सुषमदूषमआरा सं २को.को. सागरोपमा पि युगलिक जीवन णी पहले तीर्थकरकाजन्म कचौथा दुषमसुषम् आरा को. की. सागुरोपमः [४२००० बर्षकम]। धकर का जन्म दषमआरा.२१००० वर्ष दुषमआरा.२१००० बर्षे का अभाव ६ प्रारे का स्वरूप (१) सुखम्-सुखम् नामक पहल। आरा = ४ कोटाकोटि सागरोपम । (२) सुखम् नामक दूसरा आरा = ३ कोटाकोटि सागरोपम । (३) सुखम्-दुःखम् नामक तीसरा आरा = २ कोटाकोटि सागरोपम (४) दुःखम्-सुखम् नामक चौथा आरा = ४२००० वर्ष न्यून ऐसा १ कोटाकोटि सागरोपम वर्ष (५) दुःखम् नामक पांचवां आरा = २१००० वर्ष (६) दुःखम् दुःखम् नामक छठा आरा = २१००० बर्ष ६ आरे = १ उत्सर्पिणी या ।.... - १० कोटाकोटि सांगरोपम अवसर्पिणी । कर्म की गति न्यारी

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