Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 58
________________ जाएगा वह अवश्य ही सम्यक्त्वी होगा। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति ही मोक्ष प्राप्ति की सचक निशानी है। अतः सम्यग्दर्शन प्राप्त सम्यक्त्वी जीव अवश्य ही मोक्ष में जाएगा। इसमें रत्तीभर भी सन्देह नहीं है। सम्यक्त्व को भव्य ही प्राप्त करता है। इसलिए भव्य जीव अवश्य ही मोक्ष में जाएगा, ऐसा न कहकर "भव्य-सम्यक्त्वी जीव अवश्य ही मोक्ष में जाएगा।" यह कहना स्पष्ट सत्य होगा। भव्य जीव कब और कैसे मोक्ष प्राप्त करता है ? यह प्रक्रिया अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसे अब आगे देखेंगे। अनन्त संसार में जीव का परिभ्रमण आत्मसत्तारूप से जीव स्वद्रव्य से नित्य रहता है। स्वद्रव्य स्वरूप से जीव का अस्तित्व अनादि-अनन्त नित्यरूप होता है । जीव द्रव्य अनुत्पन्न अविनाशी द्रव्य है । जो उत्पन्न होता है वह विनाशी होता है और जो अनुत्पन्न होता है वह अविनाशी होता है । उत्पन्न द्रव्य अनित्य एवं नाशवन्त होता है, जबकि अनुत्पन्न द्रव्य जो कभी उत्पन्न ही नहीं होता है, वह नित्य-अविनाशी-शाश्वत होता है। पुद्गल-जड़ पदार्थ उत्पन्न द्रव्य है, अतः वह क्षणिक एवं नाशवंत है । जीवद्रव्य (आत्मा) अनुत्पन्न होने से कालिक शाश्वत है । संसार, यह जीव और अजीव की संयोगी-वियोगी अवस्थाविशेष है। अतः संसार अपने रूप में कोई स्वतन्त्र अस्तित्ववान् द्रव्य नहीं है । जीव की अजीव पुद्गल पदार्थ के साथ संयोगी-वियोगी अवस्था को संसार कहते हैं । अतः न तो संसार को किसी ने बनाया है और न ही आत्मा को किसी ने निर्माण बनाई) की है, और न तो बनती है, न ही बनाई जाती है, न ही इसका कोई कर्ता-निर्माता है। जीव स्वयं अपने ससार का निर्माता है। वह अपने रहने के लिये पुद्गल परमाणु पदार्थों का देहरूप पिण्ड बनाकर उसमें रहता हैं । अतः जीव ही अपना शरीर बनाता है। इस तरह नित्य-अनित्य, उत्पन्न-अनुत्पन्न, विनाशीअविनाशी, ऐसे जड-चेतन दो द्रव्यो के संयोग-विशेष का बना हुआ यह संसार चलता रहता हैं । सयोगी द्रव्य का ही वियोग होता है । जीव का देह के साथ संयोग, ब्यावहारिक भाषा में जन्म कहलाता है, और मात्र अल्पकाल के लिये देह वियोग को व्यावहारिक भाषा में मृत्यु कहते हैं। अतः जन्म-मरण यह आत्मा और पुद्गल की मात्र संयोगी-वियोगी अवस्थाविशेष है। नियम यह है कि-"जातस्य प्र वो मृत्युः" जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित ही होती हैं, तथा जो उत्पन्न होता है, उसका कर्म की गति न्यारी

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