Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 30
________________ उपरोक्त तर्क- पूर्ण वाक्यों में सत्य खोजने की बुद्धि से यदि देखा जाए तो स्पष्ट दिखाई देता है कि - १. जो सोना होता है वह पीला जरूर होता है परन्तु जो पीला होता है वह सोना नहीं भी होता है क्योंकि पीतल भी पीला होता है, परन्तु उसे सोना नहीं कह सकते हैं । लेकिन सोने को जरूर पीला कहते हैं । २. जो चांदी होती है वह जरूर चमकती है, परन्तु जो कुछ चमकती हुई हो उसे चांदी नहीं भी कह सकते हैं, क्योंकि जिंक धातु भी चांदी की तरह चमकीली होती है । अतः न तो जिंक को चांदी कहते हैं और न ही चांदी को जिंक कह सकते हैं । चमकीलेपन के सादृश्य से घातु जैसी दिखाई देती है, परन्तु एक नहीं होती है । ३. जो माता होती है वह स्त्री अवश्य ही है, परन्तु जो स्त्री होती है वह माता नहीं भी होती है क्योंकि वंध्या भी स्त्री जरूर है परन्तु वह माता नहीं होती है । इस तरह स्त्रीपने का सादृश्य होते हुए भी मातृत्व भाव अलग ही है । ४. जहां धुआं रहता है वहां अग्नि अवश्य ही रहती है, परन्तु जहां अग्नि रहती है वहां धुआं नहीं भी रहता है । “तप्तअयः पिंडआयोगोलक' भट्टी में तपाया हुआ लोहे का गोला बाहर रखा हुआ हो वहां अग्नि जरूर रहती है, परन्तु धुंआं नहीं होती है । ५. जो जरूर खाता है, परन्तु खाने वाले सभी मनुष्य नहीं भी होते हैं, खाते हैं । ६. जो अरिहंत होते हैं वे अवश्य ही भगवान कहलाते हैं, परन्तु जो भगवान कहलाते हैं वे अरिहंत नहीं भी होते हैं, क्योंकि ऐसे कई रागी - द्वेषी एवं भोगीलीला वाले भी अपने आपको भगवान कहते हैं । तथा वर्तमान कलियुग में कई बन बैठे हुए भगवान भी हैं जो भोगलीला एवं पापलीला चला रहे हैं । वे अपने आपको भगवान कहते और कहलाते हैं, वे अरिहंत वीतराग नहीं कहला सकते हैं । कोष के आधार पर " भग" शब्द के १४ अर्थ बताए गए हैं अतः १४ प्रकार के “भगवान” हो सकते हैं, परन्तु अरिहंत तो मात्र वीतरागी - सर्वज्ञ ही होते हैं । ७. जो हीरा होता है, वह जरूर रंगीन पत्थर कहलाएगा, क्योंकि वह पत्थर की जाति का हैं और रंगबिरंगा है, परन्तु हर रंगीन पत्थर हीरे की जाति का नहीं होता है । अतः वह हीरा नहीं कहलाता है। रंगीनता का सादृश्य होते हुए भी जाति रूप से हीरे और पत्थर का भेद रहता है । मनुष्य है वह क्योंकि पशु भी इस प्रकार के तर्क -युक्ति पूर्वक विचार करना अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी के लिए व्यायाम नहीं करना चाहता है । इसलिए "सब इत्यादि मानना उसके लिए बड़ा आसान और से विचार करें तो ऐसा लगेगा कि - हम ठगे कर्म की गति न्यारी बड़ा मुश्किल है । अतः वह बौद्धिक भगवान एक हैं” “सब धर्म एक है" सरल लगता है, परन्तु अच्छी तरह २८

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