Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 10
________________ के समान श्रोतागण हों, फिर बाकी क्या रहे ? इन वाचनाओं में पूज्यश्री का हृदय पूर्णतः खुला था । वाचनाओं की इस वृष्टि में सराबोर होकर अनेक आत्माओं ने परम प्रसन्नता का अनुभव किया था । अधिक आनन्द की बात तो यह है कि यह वृष्टि तात्कालिक अवतरण के द्वारा नोट के रूप में डेम में संगृहीत होती रही । हमारे ही गांव के रत्न पूज्य पंन्यासश्री मुक्तिचन्द्रविजयजी गणिवर तथा पूज्य गणिवर्यश्री मुनिचन्द्रविजयजी के द्वारा इन वाचनाओं का अवतरण हुआ है, जो अत्यन्त ही हर्ष की बात है । इस पुस्तक की त्वरित गति से प्रेस कोपी कर देने वाले पू. साध्वीजी कुमुदश्रीजी की शिष्या पू.सा. कल्पज्ञाश्रीजी के शिष्या पू.सा. कल्पनंदिताश्रीजी का हम कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हैं । पुस्तक के इस कार्य में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले भी अभिनन्दन के पात्र हैं । पूज्य बन्धु-युगल के द्वारा अवतरण किये गये दो पुस्तकों (कहे कलापूर्णसूरि-१, कहा कलापूर्णसूरिने-२) की तरह यह पुस्तक भी जिज्ञासुगण अवश्य पसन्द करेंगे ऐसी हम श्रद्धा रखते हैं । ये पुस्तक पढ़कर प्रभावित हो चुके पाठकों के पत्रों से हमारे उत्साह में निरन्तर वृद्धि होती रहती है । कितनेक जिज्ञासु गृहस्थ तो ये पुस्तक पढ़कर नवीन पुस्तक हेतु अपनी ओर से अनुदान देने के लिए तत्पर रहते हैं, जो इस पुस्तक की लोकप्रियता एवं हृदयस्पर्शिता कहती है ।। भूकम्प-पीड़ित हमारा गांव (गुजराती आवृत्ति में से) वि. संवत् २०५७, माघ शुक्ला -२, शुक्रवार, दि. २६-१२००१ के प्रातः ८.४५ का समय कच्छ-गुजरात के लिये अत्यन्त भयावह सिद्ध हुआ । केवल ढाई-तीन मिनट में ही सैंकडों गांव धराशायी हो गये । हजारों मनुष्य खंडहरों के नीचे दबकर 'बचाओ, बचाओ' की चीख मचाने लगे । अन्य अनेक व्यक्तियों को तो

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