Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मंगल प्रवचन से जीवन की पूर्णता प्रवचन पारस पत्थर है : www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ परमात्मा की वाणी पूर्णतया निर्दोष है, विकार रहित हैं. ३५ गुणों से युक्त जिनेश्वर भगवान की वाणी और उपदेश-लब्धि के द्वारा जन्मी वो भाषा है, जिसका श्रवण किया जाय तो जीवन सार्थक बनता है. इस वाणी को पारस पत्थर की उपमा दी, जो यदि हृदय से स्पर्श कर जाय तो यह हृदय स्वर्ग जैसा मूल्यवान बन जाये, परोपकारी बन जाये. एक व्यक्ति ने प्रश्न किया- “हे प्रभु! हम प्रतिदिन प्रवचन का श्रवण करते हैं परन्तु अभी तक तो यह जीवन स्वर्ग जैसा मूल्यवान नहीं बना. क्या कारण है?" कारण स्पष्ट है. सेठ मफतलाल पाली से निकले थे, पास में कुछ था नहीं. अचानक रास्ते में जाते समय कोई महात्मा मिल गये. बेचारे परिस्थितियों से लाचार सेठ को किसी ने कह दिया - "संन्यासी के पास पारस पत्थर है, यदि वो तुम्हे मिल जाये तो तुम्हारा सारा लोहा सोना वन जायेगा." मफतलाल प्रलोभन वश उस संन्यासी के पीछे-पीछे जाने लगे. संन्यासी ने विचार किया और कहा- “भले आदमी, तुम गृहस्थ हो, तुम्हारा परिवार है, परिवार का बन्धन है. हमारे जैसे संन्यासियों के पीछे क्यों भटक रहे हो?" मफतलाल ने कहा - “महाराज, आप तो परम दयालु हैं, कृपालु हैं. मैं घर की परिस्थिति से इतना लाचार हूँ कि मेरे लिए घर क्या है, संसार क्या और जगत क्या? सारा ममत्व मेरा चला गया है. आप से क्या कहूँ, अगर आपकी परोपकारी दृष्टि हो जाये, वो पारस पत्थर यदि आप मुझे दे दें, आपके किसी काम तो आयेगा नहीं. मैं संसारी हूँ, कम-से-कम मेरा घर बार तो सुखी हो जायेगा. " योगी पुरुष ने पारस पत्थर निकाल करके दे दिया- “भले आदमी, इसे तुम ले जाओ. " वह लेकर घर पर आया. पूर्वजों की एक बहुत बड़ी लोहे की कोठी पड़ी थी, उसमें ले जाकर डाल दिया. प्रतीक्षा में बैठा रहा, कब लोहे की कोठी सोने की कोठी में बदले घण्टे -दो घण्टे का समय निकल गया. कोई परिवर्तन नहीं आया उसमें तव मन के अंदर एक दुर्भाव उत्पन्न हुआ यह साधु संन्यासी नहीं एक शैतान था, मुझे बेवकूफ बना गया. मेरे परिवार के अन्दर मेरा फजीता करा दिया. मैं लोगों के समक्ष झूठा वना. वापस संन्यासी के पास गया और बोलाअगर नहीं देना था तो कोई जोर जबर्दस्ती थोड़े ही थी. मैंने कोई तुम्हारा हाथ थोड़े ही पकड़ा था. पर ऐसा बेवकूफ मुझे क्यों बनाया लाकर के गलत पत्थर दे दिया, पारस पत्थर के नाम से. मैंने इसका प्रयोग किया, दो घण्टे तक बैठा रहा, परन्तु उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया तो बात क्या है ? सत्य क्या है ? बतलाओ. For Private And Personal Use Only संन्यासी ने कहा- साधु संतो का आचरण कभी असत्य नहीं होता. मैंने जो पदार्थ दिया, उस पर मेरा पूर्ण विश्वास है. तुम्हारा प्रयोग गलत है, चलो मैं तुम्हारे साथ आता हूँ. संन्यासी ने घर जाकर पूछा- वोलो ! तुमने कहाँ प्रयोग किया. मफतलाल ने कहा - इस कोठी के अन्दर.

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