Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ जीवन दृष्टि बैठता है, उसे स्वयं ब्रह्मा भी नहीं समझा सकता.] यदि कोई सचमुच ज्ञान पाना चाहता है- किसी से कुछ सीखना चाहता है तो उसे अपने मन का खाली लोटा लेकर वहाँ पहुंचना चाहिये. जो लोटा पहले से भरा है, उसे और नहीं भरा जा सकता. खाली (कोरे) कागज पर ही चित्र बनाया जा सकता है. जिस कागज पर पहले से चित्र बना हुआ है. उस चित्र पर चित्र नहीं बनाया जा सकता. यहाँ भी उस शहजादी को होश में लाने का प्रयास किया जा रहा था, जो पहले से होश में थी. जब उसने सुन लिया कि मौलवी साहब को सूली पर चढ़ाने के लिए सिपाही ले जा चुके हैं तब उसने बेहोशी से होश में आने का अभिनय किया. धीरे से वह उठ बैठी. आँखे खोलते ही उसने पूछा - "मौलवी साहब कहाँ हैं पिताजी!" बादशाह - "तुम्हारी इज्जत लूटने की कोशिश करने वाले उस नालायक को सजाए-मौत दे दी गई. आदमी उसे सूली पर चढ़ाने ले गये हैं." शाहजादी बोली-अरे पिताजी! गज़ब हो गया-बहुत गलत हो गया. मौलवी साहब तो बड़े उपकारी हैं. एक साँप मेरी ओर आ रहा था. बहुत काला और लम्बा था वह मैं तो एकदम घबराहट में पड़ गई. मौलवी साहब ने अपनी जान जोखिम में डालकर उस साँप को पकड़ लिया और बाहर फेंक दिया. जब वे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे, तभी मैं चिल्लाई - हाथ मत डालियो! हाथ मत डालियो! परन्तु मेरी चिल्लाहट पर ध्यान न देकर उन्होंने मनमानी की और मेरी जान बचाई. वे पुरस्कार के पात्र हैं, दण्ड के नहीं." वादशाह ने तत्काल सैनिकों को भेजकर बड़े सन्मान के साथ मौलवी साहव को वापस अपने सामने बुलाया. बेइज्जती के लिए उनसे माफी मांगी और एक जागीर इनाम में दे दी और साथ ही कहा कि - आपने मेरी बच्ची की जान बचाकर मुझ पर जो एहसान किया है, उसके लिए मैं आपका जीवन भर आभारी रहूँगा. दूसरे दिन शहजादी ने मौलवी साहव से कहा - “नौ लाख चरित्रों में से एक ही आपको बताया है. कहिये तो कुछ और भी बताऊँ!" मौलवी साहब बोले - “खुदा की मेहरवानी से मैं बच गया. एक ही करिश्मा काफी है. इसी ने मुझे सावधान कर दिया है. अब और दूसरे करिश्मों को दिखाने की जरूरत नहीं." मौलवी साहब तो सावधान हो गये; हमें भी सावधान रहना है. सदाचार की चादर पर लगा हुआ एक भी दाग जीवन-भर खटकता रहता है; क्योंकि वह अमिट होता है. सदाचार के प्रति की गई जरा-सी असावधानी, थोड़ी-सी शिथिलता, तनिक-सी भूल जी का जंजाल बन जाती है- सारी प्रतिष्ठा को धूल में मिला देती है। इसीलिए प्रभु महावीर बार-बार कहते हैं : For Private And Personal Use Only

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