Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ ध्यान और साधना किये हैं. कभी कोई प्रतिकार नहीं किया. निरन्तर छह महीनों तक मूर्तिकार के मन मस्तिष्क में महावीर स्वामी की मंगलमय आकृति छाई रही. परिणाम स्वरूप वह पत्थर मूर्ति बन सका. यह मूर्ति का सन्मान वास्तव में उस पत्थर की भी तपस्या का सन्मान है और जिन प्रभु महावीर की आकृति उसने धारण की है, उनकी तपस्या का भी. । दूसरी ओर तुम हो. शिल्पी के सामने तुम्हें भी ले जाया गया. सहिष्णुता की परीक्षा करने के लिए उसने हथौड़ी का एक प्रहार किया. तुम आवेश में आ गये. क्रेक हो गये. उसने तुम्हें सीढ़ी के योग्य पत्थर की आकृति बनाकर छोड़ दिया. लोगों से उसने कह दिया कि यह पत्थर प्रतिमा के योग्य नहीं है. अयोग्य घोषित कर दिये जाने पर तुम्हें यहीं सीढ़ी में लाकर फिट कर दिया गया. असहिष्णुता की सजा तुम्हें मिल रही है. प्रतिकार का फल तुम्हें यहाँ भोगना पड़ रहा है.” यह सुनकर उसका रुदन शान्त हो गया. अब वह समझदार हो गया था, इसलिए क्रोध नहीं किया मुझ पर, अन्यथा कहा है :उपदेशो हि मूर्खाणाम् प्रकोपाय न शान्तये । पयः पानं भुजङनाम् केवलं विषवर्धनम् ।। (मूों को यदि उपदेश दिया जाय तो इससे गुस्सा वढ़ता ही है, शान्त नहीं होता. साँपों को दूध पिलाने से केवल उनका जहर बढ़ता है.) ___ गरम दूध में नीम्बू का रस डाल दिया जाय तो तुरन्त फट जाता है. उत्तेजित व्यक्ति को उपदेश देने पर उसके सारे सद्गुण नष्ट हो जाते हैं. क्षुब्ध व्यक्ति गरम तेल के समान होता है. उसमें उपदेश-रूपी पानी के छींटे डाल दिये जायँ तो उछलकर वह उपदेश को ही जलाने का प्रयास करता है, महाराष्ट्र के सन्त तुकाराम कभी क्षुब्ध नहीं होते थे. एक वार किसी खेत के पास से गुजर रहें थे कि वहाँ किसान ने गन्ने का एक भारा उन्हें भेंट किया. भारा उठा कर ला रहे थे कि रास्ते में अनेक बच्चों ने उनसे गन्ने की मांग की. सन्तों में सहज उदारता होती है. भारा से गन्ना निकाल कर एक वच्चे को दिया, फिर दूसरे को, फिर तीसरे को. इस प्रकार बाँटते रहे और जव घर पहुँचे तो उनके पास केवल एक ही गन्ना बचा था. गन्ना देखकर पत्नी आगबबूला हो गई. दिन भर वाहर रहे और शाम को लौटे तो केवल एक गन्ने के साथ! पत्नी ने गन्ना हाथ में उठाया और उसी से सन्त तुकाराम के सिर पर प्रहार किया. गन्ने के तीन टुकड़े हो गये. सन्त ने कहा :- “परमेश्वर! पत्नी हो तो ऐसी कि इस गन्ने के टुकड़े भी मुझे नहीं करने दिये, स्वयं ही कर दिये. बंटवारा हो गया गन्ने का. एक टुकड़ा बच्चे के लिए; एक पत्नी के लिए और एक मेरे लिए. कितना अच्छा हुआ?" For Private And Personal Use Only

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