Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ जीवन दृष्टि बन गया. कलकत्ता के ग्रान्ट होटल के नीचे सेठ मफतलाल अपनी मर्सीडीज गाड़ी लेकर आये और होटल के सामने खड़ी करके चले गये. वहाँ गाड़ी पार्किंग नहीं की जाती थी. परन्तु जैसे ही वापस लौटे, पुलिस मेन वहाँ खड़ा देखा. गाड़ी गलत पार्क की हुई थी. पुलिस मेन ने गाड़ी देखी और सोचा- कोई बड़ा आदमी दिखता है. चालान भरवा कर कोर्ट के चक्कर में नहीं पड़ना पसंद करेगा. अपनी भी कुछ आमदनी हो जायगी. भ्रष्टाचार तो आप जानते ही है कि सभी जगह फैला हुआ है. एक हिन्दी कवि ने इस झूठ के साम्राज्य के बारे में अपनी कविता के माध्यम से परिचय दिया आज झूठ का ही प्रताप है, सच बोलना महापाप है। बाप गधा है बेमतलब का, मतलब है तो गधा वाप है। सेठ मफतलाल पुलिस मेन का इरादा भांप गये. वगैर एक धेला खर्च किये बिना गाड़ी अपने कब्जे में करने का तुरन्त उपाय सोचा, टैक्सी ली और घर आ गये. घर से थाने में फोन किया कि मेरी फलां नम्वर की गाड़ी फलां कलर की और फलां मोडल की चोरी हो गई है. थाने में रिपोर्ट लिखवा कर वह निश्चित हो गये कि गाड़ी को तो कोई नुक्सान होने वाला है नहीं. वह पुलिस वाला इधर खड़ा गाड़ी मालिक का इन्तजार करता रहा. इधर वायरलेस से गाड़ी के बारे में सभी जगह सूचना भेज दी गई. जैसे ही पुलिस की गाड़ी वहाँ पर आई, अधिकारी ने देखा कि गाड़ी तो वही है, जिसकी चोरी हो जाने की रिपोर्ट लिखी गई है. पुलिस मेन से अधिकारी ने कहा- यह गाड़ी तो चोरी होई गई थी. तुम यहाँ पर खड़े हो चोर आयेगा कैसे. पुलिस मेन विचारा वड़ा निराश हुआ कि एक घंटा मेरा यूं ही बेकार हो गया, आमदनी भी नहीं हुई. पुलिस की गाड़ी के पीछे लगाकर मर्सीडीज को सेठ मफतलाल के घर पर पहुंचाया गया. सेठ मफतलाल को गाड़ी सौंप दी-ये रही आपकी गाड़ी. एक पैसा भी खर्च हुआ नहीं और गाड़ी सुरक्षित घर पहुंच गई. तो मेरे कहने का यह आशय था कि हमारी बुद्धि का अतिरेक इतना भयंकर है कि जहाँ इसका उपयोग आता तत्व के चिन्तन के लिए होना चाहिये. सत्य की खोज करनी चाहिए, उसकी जगह पर हम इसका अनीति के लिए, अप्रामाणिकता के लिए करते हैं .. हमारा चरित्र और वर्तमान शिक्षा प्रणाली : पहले पुराने जमाने के समय में ऋषि मुनियों के आश्रम में शिक्षा की व्यवस्था थी. हमारी उस समय की शिक्षा प्रणाली ही ऐसी थी कि छात्र ऋषि-मुनियों के आश्रम में रह कर तप और त्याग से परिपूर्ण बन कर निकलते थे. वे शुद्ध सदाचारी और संयमी वनकर के इस देश के For Private And Personal Use Only

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