Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि जैन समाज चाहता था कि ॐकारेश्वर के निकट एक विशाल भव्य जिनालय भी बन जाय, इसके लिए महाराज विक्रमादित्य ने अनुज्ञा भी प्राप्त करनी थी और सम्पत्ति भी. __ महाराज के पास इस कार्य के लिए किसे भेजा जाय? समाज की इस समस्या का समाधान करने के लिए जैनाचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरि तैयार हो गये. उन्होंने सुन रक्खा था कि महाराज विक्रमादित्य काव्य प्रेमी हैं. काव्यकला से प्रसन्न होकर वे प्रचुर पुरस्कार कविवृन्द को दिया करते हैं. आचार्यश्री ने भी उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रशस्ति में चार श्लोक रचे. उन्हें अपने साथ रखकर वे राजमहल के द्वार पर जा पहुंचे. उन चार श्लोकों के अतिरिक्त एक पांचवां श्लोक तत्काल वहीं खड़े-खड़े एक कागज के टुकड़े पर लिख कर द्वारपाल को दिया. द्वारपाल ने वह श्लोक महाराज को दे दिया. महाराज ने उसे पढ़ा :दिहक्षुर्भिक्षुरायातस्तिष्ठति द्वारि वारितः । हते न्यस्तचतुः श्लोकः किं वाऽऽगच्छतु गच्छतु ।। [देखने की इच्छा से आया हुआ एक भिक्षुक रोके जाने से द्वार खड़ा है. उसके हाथ में (सुनाये जाने के लिए स्वरचित चार श्लोक हैं. वह आये या चला जाय?] इस श्लोक में ही अनुप्रास और यमक की चमक से प्रसन्न हो कर महाराज विक्रमादित्य ने भी एक श्लोक लिख कर द्वारपाल को दे दिया कि वह आगन्तुक को दे दे. द्वारपाल ने आचार्यश्री को महाराज का लिखा हुआ श्लोक दे दिया. उन्होंने पढ़ा :दीयते दशलक्षाणि शासनानि चतुर्दश । हते न्यस्तचतुः श्लोको यद्वाऽऽगच्छतु गच्छतु ।। [दस लाख स्वर्ण मुद्राओं के साथ चौदह राज्यों का अधिकार दिया जाता है (पुरस्कार के रूप में). अब हाथ में जिसके चार श्लोक हैं, वह आना चाहे तो आ जाय और जाना चाहे तो चला जाय (यह उसी की इच्छा पर निर्भर है. वह जैसा भी चाहे, करे)] आचार्यजी जैन साधुत्व की मर्यादा के अनुसार न दस लाख स्वर्णमुद्राएं ले सकते थे और न चौदह राज्यों का अधिकार ही. उनका प्रयोजन तो कुछ दूसरा ही था. फिर रचे हुए श्लोकों को सुनाना भी जरूरी था; इसलिए वे राजसभा में चले गये. महाराज उनके स्वागत में खड़े हो गये. उन्हें सम्मानपूर्वक उच्च आसन पर बिठाकर कहा गया कि आप अपने चारों श्लोक सुना दें. For Private And Personal Use Only

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