Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मितभाषिता : एक मौन साधना ८७ वे बोले :- “आपने पहले क्यों नहीं बताया? इसके लिए मुझे दो सप्ताह तक सोचना पड़ेगा!" व्यक्ति ने कहा :- “यदि आधा घंटे तक बोलने के लिए कहा जाय तो? वे बोले :- “आधे घंटे तक बोलने के लिए भी कम से कम एक सप्ताह का समय चाहिये." व्यक्ति ने कहा :- "और यदि पुरे एक घंटे का समय भाषण के लिए निर्धारित कर दिया जाय तो?" विल्सन ने कहा :- “मैं अभी चलने को तैयार हूँ. चलिये!" इससे क्या सिद्ध होता है? संक्षिप्त भाषण में अधिक चिन्तन की - अधिक समय तक तैयारी करने की आवश्यकता होती है. बोलना एक कला है. मुँह से निकले हमारे प्रत्येक शब्द का श्रोता पर क्या प्रभाव पडेगा? इसका पूरा - पूरा विचार करके फिर मुंह खोलना चाहिये : बोलो बोल अमोल है; बोल सके तो बोल । पहले भीतर तौल कर; फिर बाहर को खोल ।। मूर्ख और विद्वान में यही अन्तर है कि विद्वान पहले सोच लेता है, फिर बोलता है. इसके विपरीत मूर्ख पहले बोल लेता है और फिर सोचता है कि वह क्या कह गया! वक्ता और वकवादी का अन्तर एक संस्कृत सुभाषित में बहुत अच्छी तरह इन शब्दों में बताया गया है : अल्पाक्षररमणीयम् यः कथयति निश्चितं स खलुवाग्मी । वहुवचनमल्पसारम् यः कथयति विप्रलापी सः।। (कम अक्षरों में सुन्दर बात जो कहता है, वह निश्चित ही कुशल वक्ता है. जिसके भाषण में शब्द अधिक हो और सार कम हो वह बकवादी है.) बहुत से वक्ता अपने भाषण की गहराई को लम्वाई से पाटने की भूल करते हैं, जो लम्बा भाषण होता है, वह प्रायः गहरा नहीं होता. एक शब्द ही नहीं - एक अक्षर भी नहीं, एक मात्रा भी यदि कम हो और पूरा भाव व्यक्त हो जाय- ऐसे वाक्य से व्याकरण के पंडितों को उतना ही आनन्द आता है, जितना पुत्र जन्म के उत्सव में :“एक मात्रालाघवेन पुत्रोत्सवं मन्यन्ते वैयाकरणाः।" For Private And Personal Use Only

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