Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि ७६ एकनाथ स्नान करके पूजा करने बैठ गये थे. युवक हाथ - पांव धोये विना ही सीधे सन्त की गोद में जाकर बैठ गया. सन्त ने युवक "बेटे! मिलने के लिए तो यहाँ बहुत से लोग आते के सिर पर प्रेम से हाथ फिराते हुए कहा है, परन्तु तुम्हारा प्रेम अद्भुत है.' " फिर भोजन का समय हुआ. एकनाथ की पत्नी श्रीमति गिरजावाई थाली परोसने के लिए की. उसी समय उछल कर वह युवक उनकी पीठ पर सवार हो गया. यह देखकर सन्त एकनाथ ने कहा " देखना यह वालक कहीं गिर न जाय. " गिरजावाई ने उत्तर "मुझे अपने वेटे हरि को पीठ पर लाद कर काम करने की आदत है ही; इसलिए इसे नहीं गिरने दूंगी." युवक दोनों की सहिष्णुता से अत्यन्त प्रभावित होकर प्रणाम करके, क्षमायाचना करके चलता वना. साधक में इतना विवेक तो होना ही चाहिये कि प्रतिकूल परिस्थिति को वह अपने अनुकूल बना ले. क्रोध की कोई दलील नहीं है : एक साहित्यकार जव अपने घर रात को देर से पहुंचे तो उनकी पत्नी ने बड़बड़ाते हुए खाना परोसा, बोली " यदि समय पर आते तो भोजन ताजा मिलता - गरम मिलता. अव खाओ ठंडा कीचड़ " साहित्यकार ने तत्काल वह परोसी हुई थाली उठा कर पत्नी के सिर पर रख दी. उसने पूछा " यह आप क्या कर रहें हैं ?" पति ने कहा - " गुस्से में तुम्हारे सिर का टेम्प्रेचर बढ़ गया है, इसलिए सोचा कि भोजन क्यों न उसी से गरम कर लूँ !” यह सुनकर पत्नी हँस दी. उसका गुस्सा गायव हो गया. एक विचारक ने लिखा है " शान्त रहो . क्रोध युक्ति नहीं है." हम किसी को कोई बात समझाना चाहते हैं तो शान्ति से भी समझा सकते हैं. समझाने के लिए युक्तियां चाहिये दलीलें चाहिये; परन्तु क्रोध अपने आप में कोई युक्ति (दलील) नहीं है. आपका व्यवहार, आपकी वाणी, आपका मुखमण्डल- सव कुछ ऐसा होना चाहिये, जो सामने आये क्रुद्ध व्यक्ति का सारा आवेश खत्म कर दे. For Private And Personal Use Only

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